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श्री
प्रथम
कल्पसूत्र
व्याख्यान.
हिन्दी
बनुवाद। ॥१४॥
उन स्वप्नों के अर्थ का विचार करता है। विचार कर अपने स्वाभाविक मतिज्ञान बुद्धि विज्ञान से अर्थनिश्चय करता है।
फिर वह स्वप्नों के अर्थ का निश्चय कर के देवानन्दा ब्राह्मणी से बोला कि हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार, कल्याणकारी, धनदायक, मांगल्यरूप और शोभायुक्त स्वप्न देखे हैं। वे आरोग्य, दीर्घायु, संतोष, कल्याणउपद्रव का न होना और मनोवांछित फलप्राप्ति करानेवाले हैं । हे देवानुप्रिये ! इस से तुम्हें अर्थ का लाभ, भोग का लाभ, पुत्र का लाभ और यावत् सुख का लाभ प्राप्त होगा। तुम्हें नव मास और साढ़े सात दिन बीतने पर एक उत्तम पुत्र पैदा होगा।
लक्षण, व्यंजन और हस्तरेखा आदि का स्वरूप वर्णन । वह पुत्र कोमल हाथ पैरों वाला, पंचेंद्रिय परिपूर्ण सुंदर शरीरवाला और व्यंजन लक्षणादि शारीरिक प्रशस्त लक्षणों से युक्त होगा। छत्र चामरादि शारीरिक प्रशस्त लक्षण चक्रवर्ती और तीर्थंकरों के एक हजार
और आठ होते हैं। बलदेव और वासुदेव के एक सौ आठ होते हैं और दूसरे भाग्यवान् मनुष्यों के बत्तीस लक्षण होते हैं। वे बत्तीस लक्षण निम्न प्रकार से होते हैं
छत्र, कमल, रथ, वज, कछुवा, अंकुश, वापिका, धनुष्य, स्वस्तिक, बंदरवाल, सरोवर, केशरीसिंह, रुद्र, शंख, चक्र, हस्ती, समुद्र, कलश, महल-मकान, मत्स्य, यव, यज्ञस्तंभ, स्तूप, कमंडल, पर्वत, चामर,
वर
॥१४॥
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