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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ ४५ ॥
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वर्ती के गर्भ में आने पर १४ स्वप्न देखकर जागती है और मंडलिक की माता मंडलिक के गर्भ में आने पर १४ स्वप्नों में से कोई भी एक स्वप्न देखकर जागती है परन्तु हे त्रिशला ! तूने तो चौदह ही महास्वप्न और उदार स्वप्न देखे हैं; इसलिए तीन लोक का नायक और धर्म में श्रेष्ठ ऐसा चार गति विनाशक चक्रवर्ती जिनेश्वर तेरा पुत्र होगा । त्रिशला क्षत्रियाणी इस अर्थ को सुन कर धारण करती है और हर्षित होती है । संतुष्ट होकर यावत् हर्ष से पूर्ण हृदयवाली होकर दोनों हाथ जोड़कर अंजलि कर के उन स्वप्नों को मन में धारण कर रखती हैं । अब वह सिद्धार्थ राजा की आज्ञा पाकर अनेक प्रकार के मणि और रत्नों से जड़े हुए उस भद्रासन से उठती हैं और उठकर शीघ्रता रहित, चपलता रहित यावत् राजहंसी के समान गति से जहाँ पर उसका निवास मंदिर हैं वहाँ चली जाती है और वहाँ ही आनंद से रहती है ।
प्रभु का अतुल प्रभाव । जिस दिन से श्रमण भगवान् महावीर प्रभु उस राजकुल में रहनेवाले तिर्यग् लोक में बसनेवाले तिर्यगजृंभक देवता वैश्रमण आगे चल कर स्वरूप वर्णन करेंगे उस प्रकार का निधानरूप से भरने लगे । वे कैसे निधान थे सो नीचे बतलाते हैं । जिस के करनेवाले मर चुके हैं, जिन निधानों के मालिक मर जाने पर
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आये उस दिन से लेकर धनद की आज्ञा में अर्थात् कुबेरद्वारा इंद्र की आज्ञा पाकर जिस का दबाया हुआ अतुल द्रव्य लाकर राजकुल में स्वामी नष्ट हो गये हैं, जिस धन को इकट्ठा उनके गोत्रिय तक भी मर चुके हैं, जिन की
चौथा व्याख्यान.
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