Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बातें होनी चाहियें । अब उन दोनों में यदि एक खमावे और दूसरा न खमावे तो जो उपशान्त होता है, स्वमाता है वह आराधक होता है और जो नहीं खमाता, नहीं उपशमता वह विराधक होता है इस लिए आत्मार्थी को चाहे वह बड़ा हो या छोटा स्वयं उपशमित होना चाहिये । हे पूज्य ! ऐसा क्यों कहा ? शिष्य का यह प्रश्न होने पर गुरु कहते हैं कि- जो श्रमणत्व - साधुपन है वह उपशम प्रधान है। यहाँ पर दृष्टान्त देते है- दश मुकुटबद्ध राजाओं से सेवित सिंधु सौवीर देश का अधिपति उदयन राजा - विद्युन्माली देवता से मिलि श्रीवीर प्रभु की प्रतिमा के पूजन से निरोगी हुए गंधार नामक श्रावकने दी हुई गोलि के भक्षण करने से अद्भुत रूप को धारण करनेवाली सुवर्णगुलिका नामा दासी को देवाधिदेव की प्रतिमा सहित हरन करनेवाले और चौदह राजाओं से सेवित मालव देश के चंडप्रद्योत नामक राजा को देवाधिदेव प्रतिमा वापिस लाने के लिए उत्पन्न हुए संग्राम में पकड़ कर पीछे आते हुए देशपुर नगर में चातुर्मास रहा। वार्षिक पर्व के दिन राजाने उपवास किया अतः राजा की आज्ञा से रसोइये ने भोजन के लिए चंडप्रद्योत से पूछा कि आप आज क्या खायेंगे ? इससे विष देने के भय से चंडप्रद्योतने कहा कि यदि तुम्हारे राजा को उपवास है तो आज मुझे भी पर्युषण होने से उपवास है, मैं भी श्रावक हूँ। यह बात राजा को मालूम होने से विचारा कि ' इस धूर्त्त साधर्मिक को भी खमाये विना मेरा वार्षिक प्रतिक्रमण शुद्ध न होगा', इस धारणा से उदयन राजाने १ आजकाल का मंदसोर. २७ For Private And Personal

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