Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir होने पर गुरु कहते हैं - चातुर्मास में प्रायश्चित वहन करने के लिए या संयम के निमित्त छठ आदि करनेवाले होते हैं। वे तपस्वी तप के कारण दुर्बल तथा कृश अंगवाले होते हैं इस लिए थकाव लगने से या अशक्ति से कदाचित कहीं मूर्छा आ जाय या गिर पड़े तो उसी दिशा में या विदिशा में पीछे उपाश्रय में रहे साधु खोज करें । यदि कहे बिना ही गया हो तो उसे कहाँ खोजने जायें । ६१ । २७ चातुर्मास रहे साधु साध्वी को वर्षाकाल मे औषधि के लिए, या बीमार की सारसंभाल के लिए, या वैद्य के लिए चार पाँच योजन जा कर भी वापिस आना कल्पता है, परन्तु वहाँ रहना नहीं कल्पता । यदि अपने स्थान पर न पहुंच सकता हो तो मार्ग में भी रहना कल्पता है परन्तु उस जगह रहना नहीं कल्पता, क्योंकि वहाँ से निकल जाने से वीर्याचार का आराधन होता है । जहाँ जाने से जिस दिन वर्षाकल्पादि मिल गया हो उस दिन की रात्रि को वहाँ रहना नहीं कल्पता । वहाँ से निकल जाना कल्पता है । वह रात्रि उलंघन करनी नहीं कल्पती । कार्य हो जाने पर तुरन्त ही निकल कर बाहर आ रहना यह भाव है । ६२ । २८ इस प्रकार पूर्व में कथन किये मुजब सांवत्सरिक चातुर्मास संबन्धी स्थविरकल्प को यथासूत्र - जैसे सूत्र में कथन किया है वैसे करना चाहिये पर सूत्र विरुद्ध न करना चाहिये । जिस प्रकार कहा है वैसे करे तो वह यथाकल्प कहलाता हैं और यदि विपरीत करे तो अकल्प कहलाता है । यथासूत्र और यथाकल्प आचरण आचरते हुए, ज्ञानादि त्रयरूप मार्ग को यथातथ्य - सत्य वचनानुसार और भली प्रकार मन, वचन, कायाद्वारा For Private And Personal

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