Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 321
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir चंदना का हाथ उठा कर ऊपर की और कर दीआ इससे उसकी निद्रा भंग हो गई । सर्पागमन का वृत्तान्त सुनाने से चंदनाने कहा-ऐसे घोरांधकार में तुमने सर्प को कैसे जाना ? अब केवलज्ञान की प्राप्ति मालूम हो जाने पर चंदनाने उस केवली के चरणों में पड़ अपने अपराध की खमावना करते-तीव्र पश्चात्ताप करते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । इस प्रकार सच्चे अन्तःकरणपूर्वक खमाते हुए दोनों को आराधना होती है, परन्तु क्षुल्लक साधु और कुंभार के जैसी भावना से मिच्छामि दुक्कडं न देना चाहिये उससे दोनों को कुछ भी आराधना नहीं होती है । वह दृष्टान्त इस प्रकार है। एक दफा एक साधु समुदाय एक कुंभार के मकान में ठहरे हुए थे। उनमें एक क्षुल्लक-छोटा साधु भी था। वह अपनी किशोर वय के कारण कुतूहल से बहुतसी कंकरें ले कर कुंभार के नये बनाये हुए कच्चे बरतनों पर निशाना अजमाने लगा। जिस घड़े पर कंकर लगती उसमें छेद पड़ जाता था। कुंभारने उसकी येह चेष्टा देख उसे मना किया। क्षुल्लकने अपने अपराध की खमावना के रूप में 'मिच्छामि दुक्कडं' कहा । कुंभार वहाँ से चला गया । आँख बचा कर वह फिर निशाने मारने लगा और बहुत से बरतन काने कर दिये । कुँमारने देख कर फिर धमकाया । साधु फिर मिच्छामि दुकडं दे कर वैसाही करने लगा तब फिर कुंभारने उसके जैसा ही बन कर एक कंकर उठा कर उसके कान पर रख उसको दबाया। साधु चिल्लाया और बोला छोड़ दो मुझे पीड़ा होती है। कुंभारने मिच्छामि दुक्कडं देकर हाथ ढीला कर दिया, परंतु फिर दवाया । फिर क्षुल्लक For Private And Personal

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