Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 317
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir कराना चाहिये । उसमें प्रासुक जल से सिर धो कर प्रासुक पानी से नापित के हाथ भी घुलाना चाहिये । जो उस तरहसे मुंडन कराने में असमर्थ हो या जिसके सिर में फुन्सी फोड़े निकले हुए हों उसको कैंची से केश कतरवाने कल्पते हैं। जो लोच सहन कर सके उसे महीने महीने बाद मुंडन कराना चाहिये। यदि कैंची से कतरावे तो पंद्रह पंद्रह दिन के बाद गुप्त रीति से कतरवाना चाहिये । मुंडन कराने और कतरवाने का प्रायश्चित्त निशीथसूत्र में कथन किये यथासंख्य लघु गुरुमास समझना चाहिये । लोच ६ महीने करना चाहिये । परन्तु स्थविरकल्पी साधुओं में स्थविर जो वृद्ध हो उसे बुढ़ापे से जरजरित होजाने के कारण तथा नेत्रों का रक्षण करने के लिए एक वर्ष के बाद लोच कराना चाहिये और तरुण को चार मास बाद लोच करना चाहिये ५७ । २३ चातुर्मास रहे साधु साध्वी को पर्युषणा बाद क्लेश पैदा करनेवाला वचन बोलना नहीं कल्पता। जो साधु या साध्वी क्लेशकारी वचन बोले उसे ऐसा कहना चाहिये । हे आर्य ! तुम आचार विना बोलते हो क्योंकि पर्युषणा के दिनसे पहले या उसी दिन बोले हुए क्लेशकारी वचन के लिए तो तुमने पर्युषणा पर्व में क्षमापना की है। अब जो पर्युषणा के बाद तुम फिर क्लेशकारी वचन बोलते हो यह अनाचार है । इस प्रकार निवारण करने पर भी जो साधु साध्वी क्लेश उत्पन्न करनेवाले वचन पर्युषणा बाद बोले तो उसे पनवाड़ी के पान की तरह संघ बाहिर करना चाहिये । जैसे पनवाड़ी सड़े हुए पान को दूसरे पान के नष्ट होने के भय से निकाल देता है, उसी प्रकार अनन्तानुबन्धी क्रोधवाला साधु भी विनष्ट ही है, ऐसा समझ कर उसे दूर कर देना उचित For Private And Personal

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