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श्री कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
॥१५६॥
है। एक और ब्राह्मण का दृष्टान्त दिया है-खेर नगरवासी रुद्र नामक एक बाह्मण वर्षकाल में खेत वाहने के नौवां लिए हल लेकर खेत में गया । हल चलाते हुए उसका गलिया बैल बैठ गया। हॉकनेवाले साटे या चाबुक से
व्याख्यान. मारने पीटने पर मी जब वह न उठा तब तीन क्यारों के मट्टी के डलों से मारते मारते उस मट्टी के डलों से उसका मुख ढक गया और श्वास रुक जाने से वह मर गया। फिर वह ब्राह्मण पश्चात्ताप करता हुआ हुआ | महास्थान पर जा कर अपना वृत्तान्त कहने लगा। दूसरे ब्राह्मणोंने पूछा कि तू अब भी शान्त हुआ या नहीं? उसने कहा कि मुझे अभी तक भी शान्ति नहीं हुई। तब ब्राह्मणोंने उसे अपनी जाती से बाहिर कर दिया । इसी प्रकार वार्षिक पर्व में कोप उपशान्त न होने के कारण जिस साधु साध्वी ने पारस्परिक क्षमापना न की हो उसे संघ बाहिर करना योग्य है । उपशान्त में उपस्थित हुआ हो उसे मूल प्रायश्चित्त देना उचित है । ५८ ।।
२४ चातुर्मास रहे साधु साध्वी से यदि पर्युषणा के दिन ऊँचे शब्दवाला तथा कटुतापूर्ण-जकार मकार आदि रूप कलह होवे तो छोटा बड़े को खमावे । यदि बड़ेने अपराध किया हो तथापि व्यवहार से छोटा बड़े को खमावे। यदि धर्म न परिणमने के कारण छोटा बड़े को न खमावे तो क्या करना ? सो कहते हैंबड़ा भी छोटे को खमावे, आपखमे और दूसरे को खमावे, आप उपशान्त होवे और दूसरों को उपशान्त करे । सुमतिपूवक, रागद्वेष के अभावपूर्वक सूत्र और अर्थ सम्बन्धी संपृच्छना या समाधि प्रश्न विशेष होने चाहिये। जिस के साथ कटुतापूर्ण कलह हुआ हो उसके साथ निर्मल मन से शान्ति होवे ऐसी अनेक शास्त्रों संबन्धी IN१५६॥
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