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कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
॥१०९॥
- पशुओं की पुकार और भगवन्त की करुणा -
सातवां जिस वक्त इन सखियों में यह वार्तालाप हो रहा था उस वक्त पशुओं की करुण पुकार सुनकर श्रीनेमिनाथ | व्याख्यान. प्रभु तिरस्कार युक्त बोले-हे रथवान् ! यह कैसा आर्तनाद सुनाई देता है ? रथवान् बोला-महाराज! आपके विवाह में भोजन के लिए एकत्रित किये पशुओं का यह वाड़ा है। सारथी की बात सुनकर प्रभु विचारने लगे-ऐसे विवाह महोत्सव को धिक्कार है जिसमें इन पशुओं का प्राण बलि हो। इधर उसी वक्त राजीमती का दाहिना नेत्र भी फुर्कने लगा और उसने अपनी सखियों से कहा । सखियाँ भी-तेरा अपमंगल दूर हो यों कहकर थू-थूकार करने लगीं।
उस वक्त नेमिनाथ प्रभुने रथवान् से कहा-हे सारथी ! तुम यहाँ से ही रथ को वापिस फिरा लो। इस वक्त नेमिनाथ प्रभु को देखकर वाडे में रहा हुआ एक हरिण अपनी गरदन एक हरिणी की गरदन पर रखकर खड़ा था, उस पर कवि घटना करता है--मानो प्रभु को देख हरिण कहता है-हे प्रभो ! मेरे हृदय को हरण करनेवाली इस हरिणी को मत मारो। हे स्वामिन् ! हमें अपने मरणसे भी अपनी प्रियतमा का विरह दुःख अति दुःसह है। प्रभु का मुख देख मानो हरिणी भी हरीण से कहती है-ये तो प्रसन्न मुखवाले तीन लोक के नाथ हैं, अकारण बन्धु हैं इस लिए हे वल्लभ ! इन्हें सर्व जीवों के रक्षण की विनती करो। तब मानो पत्नी से प्रेरित हरिण नेमिनाथ प्रभु को कहने लगा--हे प्रभो ! झरनों का पानी पीनेवाले, जंगल का घास
A॥ १०९॥
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