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१४ चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को ' मेरे लिए तुम लाना ' जिसको ऐसा न कहा हो उस साधु को 'तेरे योग्य मैं लाऊँगा ' ऐसा किसीको जनाया नहीं है ऐसे साधु को निमित्त अशन आदि आहार नहीं कल्पता । ४० । हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है ? शिष्य की ओर से यह प्रश्न होने पर गुरु कहते हैं “ जिसको मालूम नहीं किया गया ऐसे साधु के लिए आहार लाया गया हो वह यदि इच्छा होवे तो करे और यदि इच्छा न हो तो आहार न करे और उलटा कहे- किसने कहा था जो तू यह लाया है ? " यदि इच्छा विना ही दाक्षिण्यता से वह खावे भी तो अजीर्णादि से दुःख पैदा हो और चातुर्मास में कभी परठना पड़े तो शुद्ध स्थान की दुर्लभता के कारण दोषापत्ति होवे इस लिए पूछ कर ही लाना चाहिये । ४१ ।
१५ चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को पानी से निचड़ते शारीर से तथा थोड़े पानी से मीजे हुए शरीर से अशनादि चार प्रकार का आहार करना नहीं कल्पता । ४२ । हे पूज्य ! ऐसा किस लिए ? शिष्य का यह प्रश्न होने पर गुरु कहते हैं कि जिसमें लंबे काल में पानी सुके ऐसे पानी रहने के स्थान जिनेश्वरोंने सात बतलाये हैं-दो हाथ, हाथों की रेखायें, नख, नखों के अग्रभाग, भमर-आँखो के उपर के बाल, दाढी और मूछ । जब यह यों समझे कि मेरा शरीर पानी रहित होगया है, सर्वथा सूक गया तब अशनादि चार प्रकार का आहार करना कल्पता है । ४३ ।
१६ चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को जो कथन करेंगे उन आठ सूक्ष्मो पर ध्यान देना चाहिये । अर्थात्
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