Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 306
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भी कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ।। १५० ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दो साधु और एक साध्वी को साथ रहना ] नहीं कल्पता । दो साधु और दो साध्वियों को साथ रहना नहीं कल्पता । यदि वहाँ कोई पाँचवाँ क्षुल्लक-छोटा चेला या चेली हो वह स्थान दूसरों की दृष्टिका विषय हो-दूसरे देख सकते हों अथवा वह स्थान बहुत से द्वारवाला हो तो साथ रहना कल्पता है । भावार्थ यह है कि एक साधु को एक साध्वी के साथ रहना नहीं कल्पता, एक साधुको दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता, दो साधुओं को एक साध्वी के साथ रहना नहीं कल्पता । एवं दो साधुओं को दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता । यदि कोई लघु शिष्य या शिष्या पाँचवाँ साक्षी हो तो रहना कल्पता है । अथवा वृष्टि विराम न पाने पर अपना कार्य न छोड़नेवाले लुहारादि की दृष्टि से या उस घर के किसी भी दरवाजे में किसी पाँचवें के विना भी रहना कल्पता है । ३८ । चातुर्मास रहे साधु को गृहस्थ के घर भिक्षा लेने के लिए आगे कथन करते हैं उस प्रकार रहना न कल्पे । वहाँ एक साधु के एक श्राविका के साथ रहना न कल्पे इस तरह चौभंगी होती है । यदि यहाँ पर कोई भी पाँचवाँ स्थविर या स्थविरा साक्षी हो तो रहना कल्पता है । या अन्य कोई देख सके ऐसा स्थान हो या बहुत दरवाजेवाला वह स्थान हो तो साथ रहना कल्पता है। इसी प्रकार साध्वी और गृहस्थ की चतुर्भगी समझना चाहिये । यहाँ पर साधु का एकाकीपन बतलाया है। किसी कारण साधु को एकला जाना पड़े उसके लिए समझना चाहिये । सांघाटिक में अन्य किसी साधु को उपवास हो या असुख होने से ऐसा बनता है । अन्यथा उत्सर्ग मार्ग में तो साधु दो और साध्वी तीन साथ विचरें ऐसा समझना चाहिये । ३९ । 1 For Private And Personal नौवां व्याख्यान. ॥ १५० ॥

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