Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 304
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir नौवा व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद क ॥१४९ पानी के लिए जाना आना कल्पता है । इस अपवाद में भी तपस्वी या भूख न सहन करनेवाले साधु भिक्षा के लिए हरएक अगली वस्तु के अभाव में ऊनके, बालों के, ऊँटके बालोंके, घास के या सूत के कपड़े से एवं तालपत्र या पलास के छत्र द्वारा वेष्टित होकर मी आहार लेने जावे । ३१ । चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को गृहस्थ के घर भिक्षा लाभ की प्रतिज्ञा से पहले यहाँ मुझे मिलेगा ऐसी बुद्धि से गोचरी गये साधु के थम थम कर पानी पड़े तो आराम के नीचे, (बगीचे आदिमें) सांभोगिक-अपने या दूसरों के उपाश्रय नीचे, उसके अभावमें या विकटगृह-जहाँ पर ग्रामलोग बैठते हैं चौपाल के नीचे, या वृक्ष के मूल में या निर्जल कैर आदि के मूल नीचे जाना कल्पता है । ३२ । उसमें विकटगृह, वृक्षमूल आदि में रहे हुए साधु को उसके आने से पहले राँधना शुरु किया भात वगैरह और बाद में राँधनी शुरु की हुई मसूर की, उड़द की या तेलवाली दाल हो तब उसे भात वगैरह लेना कल्पता है परन्तु मसूरादि की दाल लेना नहीं कल्पता। इसका यह भाव है कि-साधु के आने से पहले ही गृहस्थोंने अपने लिए जो राँधना शुरु किया हो वह उसे कल्पता है, क्यों कि इससे उसे दोष नहीं लगता, और साधु के आने पर जो राँधना प्रारंभ किया हो तो वह पश्चादायुक्त होता है अत: उससे उद्: गमादि दोष की संभावना होती है। इसी कारण वह लेना नहीं कल्पता। इसी तरह शेष रही दोनों बातें जान लेना चाहिये । ३३ । उसके घर पर साधु के आने से पहले प्रथम ही मसूरादि की दाल पकानी शुरु कर दी हो और चावलादि बादमें पकाने रक्खे हों तो उस साधु को वह दाल ही कल्पती है परन्तु चावल नहीं कल्पते । ३४ । ॥ १४९॥ For Private And Personal

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