Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 302
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भी कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ १४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir समावेश करना नहीं कल्पता । एवं दत्ति से अधिक लेना भी नहीं कल्पता । उस दिन उसे उतने ही भोजन से रहना कल्पता है, परन्तु आहार पानी के लिए गृहस्थ के घर उसे दूसरी दफा जाना नहीं कल्पता । २६ । ११ चातुर्मास रहे हुए साधु साध्वियों को आगे कथन किये स्थानों में भिक्षार्थ जाना नहीं कल्पता । शय्यातर - उपाश्रय के मालिक का घर और दूसरे ६ घर त्यागने चाहियें। क्यों कि वे नजदीक होने से साधु के गुणानुरागी होने के द्वारा उद्गमादि दोष की संभावना होती है। किसको जाना न कल्पे १ निषिद्ध घर से पीछे लौटनेवाले साधु को न कल्पे, अर्थात् निषिद्ध किये घर से उसे दूसरी जगह जाना चाहिये यह भाव है । यहाँ भिक्षा के लिए जाने में बहुवचन के बदले एक वचन उपयुक्त किया है, पर बहुतपन इस प्रकार दिखलाते हैं। सात घर में मनुष्यों से भरपूर जीमन हो तो वहाँ जाना नहीं कल्पता । यहाँ अर्थ में सूत्रकार के जुदे जुदे मत हैं। एक आचार्य कहते हैं कि निषिद्ध घर से अन्यत्र जाते हुए साधुओं को जीमन में उपाश्रय से लेकर सात घर तक भिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता । दूसरे कहते हैं कि निषेध किये घरसे दूसरी जगह जाते हुए साधुओं को जीमन में उपाश्रय से लेकर पहले सात घर भिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता । यहाँ दूसरे मत में उपाश्रय से शय्यातर और दूसरे पहले सात घर त्यागना यह भाव है । २७ । १२ चातुर्मास रहे पाणिपात्री जिनकल्पी आदि साधु को ओस, धुंध एसी वृष्टिकाय - अप्काय पड़ने पर गृहस्थ के घर भात पानी के लिए जाना आना नहीं कल्पता । २८ । चातुर्मास रहे करपात्री जिनकल्पी आदि For Private And Personal नौवां व्याख्यान. ॥ १४८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327