Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 308
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir नौवां व्याख्यान. श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद। ॥१५१ ॥ छद्मस्थ साधु साध्वियों को वारंवार जहाँ जहाँ वे स्थान करें वहाँ वहाँ पर सूत्र के उपदेश द्वारा जानने चाहिये ।। आँखों से देखना है और देख तथा जान कर परिहरने योग्य होने से विचारने योग्य हैं। वे आठ सूक्ष्म इस प्रकार हैं- सूक्ष्म जीव, सूक्ष्म पनक फुल्लि, सूक्ष्म बीज, सूक्ष्म हरित, सूक्ष्म पुष्प, सूक्ष्म अंडे, सूक्ष्म बिल और सूक्ष्म स्नेह-अपकाय । वे कौनसे सूक्ष्म जीव हैं ? ऐसा शिष्य का प्रश्न होने पर गुरु कहते हैं-तीर्थंकरों और गणधरोंने पाँच प्रकार के-वर्ण के सूक्ष्म जीव कहे हैं-काले, नीले, लाल, पीले और धौले, एक वर्ण में हजारों मेद और बहुत प्रकार के संयोग हैं। वे सब कृष्ण आदि पाँचों वर्ण में अवतरते हैं-समाविष्ट होते हैं। अणुद्धरी नामक कुंथुवे की जाति है जो स्थिर रही हुई, हलनचलन न करती हो उस वक्त छमस्थ साधु साध्वीयों को तुरन्त नजर नहीं आती और जो अस्थिर हो, जब चलती हो तब छद्मस्थ साधु साध्वीयों को नजर आती है। इस लिए छबरुप साधु-साध्वियोंको उन सूक्ष्म प्राणों-जीवों को वारंवार जानना, देखना और परिहरना चाहिये । क्योंकि वे चलते हुए ही मालूम होते हैं किन्तु स्थिर रहे मालूम नहीं होते । ४४ । दूसरे सूक्ष्म पनक कौनसी है ? शिष्य के ऐसा प्रश्न करने पर गुरु कहते हैं कि सूक्ष्म पनक पाँच प्रकार का कहा है, जो इस तरह है-काला, नीला, लाल, पीला और सुफेद । सूक्ष्म पनक एक जाति है जिस में वे जीव उत्पन्न होते हैं । जहाँ पर वह सूक्ष्म पनक पैदा होती है वहाँ पर वह उसी द्रव्य के समान वर्णवाली होते है। वह पत्रक की जाति छद्यस्थ साधु साध्वीयों को जाननी, देखनी और परिहरनी चाहिये । वह प्रायः शरद् ऋतु ॥१५१॥ For Private And Personal

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