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में जमीन काष्ठादिके अन्दर पैदा होती है और जहां पैदा होती है वहाँ वह उसी द्रव्य के वर्ण-रंगवाली होती है। यह प्रसिद्ध है । अब और कौन से सूक्ष्म हैं ? ऐसा शिष्य के पूछने पर गुरु कहते हैं कि अन्य सूक्ष्म पांच प्रकार की होती है जो इस तरह है काला, नीला, लाल, पीला और सुफेद कणिका याने नखिका-नाखूनों के दोनों तरफ की चमड़ी। उसके समान वर्णवाला ही दूसरा सूक्ष्म कहा है जो छमस्थ साधु साध्वियों को जानना, देखना और परिहरना चाहिये। अब सूक्ष्म हरित करते हैं, वक्ष्म हरित पांच प्रकार की कही है, काली लीली, लाल, पीली और सफेद । सूक्ष्म हरित यह है कि जो पृथ्वी समान वर्णवाली प्रसिद्ध है। जो साधु-साध्वियों को जाननी, देखनी और परिहरनी चाहिये । यह सूक्ष्म हरित जानना चाहिये। वह अल्प संघयण-कम शरीरशक्तिवाली होती है इस कारण वह थोडे ही समय में नष्ट हो जाती है। अब वे सूक्ष्म पुष्प कहते हैं-सूक्ष्म पुष्प पांच प्रकार के होते हैं, काले से लेकर सुफेद वर्णतक । वृक्ष के समान वर्णवाले वे. सूक्ष्म पुष्प प्रसिद्ध ही हैं जो छमस्थ साधु साध्वियों की जानने, देखने और परिहरने चाहियें । ये सूक्ष्म पुष्प | समझना । अब शिष्य के पूछने पर सूक्ष्म अंडे बतलाते हैं। सूक्ष्म अंडे पांच प्रकार के होते हैं-मद्यमक्खी, खटमल आदि के अंडे वे उदंशांड, लूता-किरली के अंडे वे उत्कलिकांड, पिपीलि का चींटियों के अंडे वे पिपीलिकांडा, हलिका-छपकी के अंडे वे हलिकांड और हल्लोहविया जो जुदी जुदी भाषाओं में अहिलोडी, सस्टी और काकिडी कहलाती है उसके अंडे वे हल्लोहलिकांड हैं। जो साधु साध्वियों को जानने, देखने
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