Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 310
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir नौवां व्याख्यान. श्री कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद । ॥१५२ ॥ और परिहरने चाहियें । ये सूक्ष्म अंडे समझना चाहिये । लयन जीवों का आश्रयस्थान । शिष्य के पूछने | पर गुरु उसके प्रकार बतलाते हैं-मूक्ष्म लयन-बिल पांच प्रकार के हैं उचिंग गर्दभाकार के जीवों के रहने का स्थान, भूमि पर बनाया हुआ उनका जो घर है उसे उत्तिंगलयन कहते हैं । भृगु-सकी हुई जमीन की रेखापानी सूक जाने पर क्यारे आदि में जो तरड़े पड़ जाती हैं वह भृगुलयन कहलाता है। सरल बिल-सीधा बिल वह सरल लयन समझना चाहिये । तालवृक्ष के मूल के आकारवाला नीचे चौड़ा और ऊपर सूक्ष्म ऐसा जो है वह तालमुख शंबुकावरी-भ्रमर का घर होता है । ये पांचों छमस्थ साधु साध्वियों को जानने, देखने और परिहरने चाहियें । ये सूक्ष्मबिल जानना चाहिये । अब शिष्य के पूछने पर गुरु स्नेह अपकाय के भेद बतलाते हैं। अवश्याय ओस जो आकाश से रात्रि के समय पानी पड़ता है। हिम तो प्रसिद्ध ही है। महिका-धूमरी । ओले प्रसिद्ध हैं और भीनी जमीन में से निकले हुए तृण के अग्र भाग पर बिन्दुरूप जल जो यव के अंकुरादि पर देख पड़ते हैं। ये पांच प्रकार के अपकाय साधु साध्वियों को जानने, देखने जोर परिहरने चाहिये । ये सूक्ष्म स्नेह समझ लेना चाहिये । ४५ ॥ १७ चातुर्मास रहे साधु भातपानी के लिये गृहस्थ के घर जाना आना चाहें तो उन्हें पूछे सिवाय जाना आना नहीं कल्पता । किसको पूछना सो कहते हैं। सूत्रार्थ के देनेवाले आचार्य को। सूत्र पढ़ानेवाले उपाध्याय को । ज्ञानादि के विषय में शिथल होते को स्थिर करनेवाले और उद्यम करनेवालों को, उत्तेजन देनेवाले MU१५२ For Private And Personal

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