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नौवां व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
॥१४७॥
चार पाँच दफा गोचरी जाना आना कल्पता है, उसकी जब इच्छा हो तब.गोचरी लावे । परन्तु सुबह की लाई रख नहीं सकता । क्यों कि इससे संयम, जीवसंसक्ति, सर्पाघ्राण आदि दोषों का संभव होता है । २४ । इस प्रकार आहार विधि कह कर अब पानी के पदार्थों का विधि कहते हैं।
९ चातुर्मास रहे हुए नित्य एकासना करनेवाले साधु को सर्व प्रकार का प्रासुक पानी कल्पता है । अर्थात आचारांग में कहे हुए इक्कीस प्रकार का या यही पर जो कहा जायगा नव प्रकार का पानी समझना चाहिये । आचारांग में निम्न प्रकार का पानी बतलाया है-उत्स्वेदिम, संस्वेदिम, तंडुलोदक, तुणोदक, तिलोदक, जवोदक, आयाम, सोवीर, शुद्धविकट, अंबय, अंबाडक, कविठ, कपिथ्थ, मउलिंग, मातुलिंग, द्राक्ष, दाडिम, खरजुर, नालिकेर, कयर, बोरजल, आमलग और चिंचाका पानी। इनमें से प्रथम के नव तो यहाँ पर भी कहे हुए हैं। चातुर्मास रहे हुए एकान्तरे उपवास करनेवाले साधु को तीन प्रकार का पानी कल्पता है । जो इस प्रकार है-उत्स्वेदिम-आटा वगैरह को खरड़े हुए हाथों के धोवन का पानी, संस्वेदिम-पत्ते वगैरह उबल कर ठंडे पानी द्वारा जो पानी सिंचन किया जाता है और चावलों के धोवन का पानी । चातुर्मास रहे हुए नित्य
छट्ट करनेवाले साधु को तीन प्रकार का पानी लेना कल्पता है, तिल के धोवन का पानी, धानों के धोवन | का पानी और जौं के धोवन का पानी । चातुर्मास रहे नित्य अहम करनेवाले साधु को तीन प्रकार का पानी | सर्प सूंग जाने से उसका विष संक्रमित होता है । इसके अलावा कालातिकम दोष भी है।
॥१४८॥
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