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लेना कल्पता है, आयामक - ओसामण, सोवीर- कांजी का पानी और शुद्ध विकट गरम पानी । चातुर्मास रहे अट्टम अधिक तप करनेवाले साधु को एक गरम पानी ही लेना कल्पता है, सो भी सिक्थक रहित हो तो कल्पता है । चातुर्मास रहे अनशन करनेवाले साधु को एक गरम पानी ही लेना कल्पता है, सो भी सिक्थ रहित हो तो कल्पता है, सिक्धु सहित नहीं और वह भी छाना हुआ हो, परन्तु तृण आदि लगने से बिन छाना कल्पे, सो भी परिमित कल्पे, सो भी कुछ कम लेना परन्तु बहुत कम भी नहीं क्यों कि उससे तृष्णा विराम नहीं पाती । २५ ।
१० चातुर्मास रहे दत्ति की संख्या - अभिग्रह करनेवाले साधु को भोजन की पाँच दत्ति और पानी की पाँच दत्ति, या भोजन की चार दत्ति और पानी की पाँच दत्ति अथवा भोजन की पाँच दत्ति और पानी की चार दत्ति लेना कल्पता है। थोड़ा या अधिक जो एक दफा दिया जाता है उसे दत्ति कहते हैं । उसमें नमक की एक चुकटी प्रमाण भोजनादि ग्रहण करते हुए एक दत्ति समझना चाहिये । क्यों कि प्रायः नमक बहुत ही कम लिया जाता है, यदि उतने ही प्रमाण में वह भात पानी ग्रहण करे तो वह दत्ति गिनी जाती है । पाँच यह उपलक्षण है, इससे चार, तीन, दो, एक, छह या सात, जितना अभिग्रह किया हो उस प्रकार कहना । सारे सूत्र का यह भाव है कि भात पानी की जितनी दत्ति रक्खी हों उतनी ही उसे कल्पती हैं, परन्तु परस्पर
* सिक्थ आहे, चावल अन्य अन्नादि का अंश मात्र ।
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