________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
५, स्थविर नाग ६, स्थविर नागमित्र ७, और कौशिक गोत्रीय स्थविर षडुलूक रोहगुप्त ८। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय, इन छह पदार्थों की प्ररूपणा करने से षड् और उलूक गोत्र में पैदा होने से उलूक, इस षड् उलूक का कर्मधारय समास करने से पडुलूक होता है। इस लिए पडुलूक रोहगुप्त कहे जाते थे। कौशिक गोत्रीय स्थविर रोहगुप्त से त्रैराशिक मत निकला । जीव, अजीव और नोजीव नामक तीन राशि की प्ररूपणा करनेवाले उस के शिष्य प्रशिष्य त्रैराशिक कहलाते हैं । उस की उत्पत्ति इस प्रकार है:-श्री वीर प्रभु के निर्वाण बाद पाँचसौ चवालिस वर्ष में अंतरंजिका नामक नगरी में भूतगृह जैसे व्यन्तर के चैत्य में रहे हुए श्री गुप्ताचार्य को वन्दन करने के लिए दुसरे ग्राम से आते हुए उसके रोहगुप्त नामक शिष्यने एक वादी द्वारा बजवाए हुए पटह का ध्वनि सुन कर उस पटह को स्पर्श किया और वहाँ आ कर आचार्य से बात की। फिर बिच्छु, सर्प, चूहा, मृगी, वराही, काकी, और शकुनिका नामक परिव्राजक की विद्याओं को उपधात करनेवाली मयूरी, नकुली, बिल्ली, व्याघ्री, सिंही, उलूकी और श्येनी नाम की सात विद्यायें और सर्व उपद्रव को शान्त करनेवाला मंत्रित रजोहरण गुरु के पास से लेकर बलश्री नामक राजा की सभा में आकर पोदृशाल नामक परिव्राजक के साथ वाद आरंभ किया । उस परिव्राजकने जीव अजीव, सुख दुःख आदि दो राशियाँ स्थापन की। तब तीन देव, तीन अग्नि, तीन शक्ति, तीन स्वर, तीन लोक, तीन पद, तीन पुष्कर, तीन ब्रह्म, तीन वर्ण, तीन गुण, तीन पुरुष, संध्यादि तीन काल, तीन वचन, तथा तीन ही अर्थ
For Private And Personal