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आठवां व्याख्यान.
श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
कहे हैं, इस प्रकार कहते हुए रोहगुप्तने जीव, अजीव और नोजीव इत्यादि तीन राशि स्थापन की। फिर उसकी विद्याओं को अपनी विद्याओं से जीतने पर उसने छोड़ी हुई रासभी विद्या को रजोहरण से जीत कर महोत्सवपूर्वक गुरु महाराज के पास आकर सर्व वृत्तान्त सुनाया। तब गुरुजीने कहा कि-" हे वत्स! तूने उसे जीता यह अच्छा किया, परन्तु जीव, अजीव और नोजीव जो तीन राशि की प्ररूपणा की यह उत्सूत्र है, अतः इसके संबन्ध में वहाँ जाकर मिच्छामि दुक्कडं दे आ"। सभा में इस तरह स्थापन किये अपने मत को मैं स्वयं ही वहाँ जाकर अप्रमाण कैसे करु ? इस प्रकार अहंकार पैदा होने से उसने वैसा नहीं किया। फिर गुरुजीने राजसभा में उस के साथ ६ मास तक वाद कर के अन्त में कुत्रिकापण से नोजीव वस्तु मांगी । वहाँपर वह न मिलने से चवालिस सौ प्रश्न कर के उसे परास्त किया । तथापि उसने अपना आग्रह ( हट) न छोड़ा, तब तंग आकर गुरुजीने क्रोध से थूकने के पात्र में से उसके मस्तक पर भस्म डाल कर उसे संघ बाहिर कर दिया। फिर उस
राशिक छठवें निवने वैशेषिक मत प्रगट किया । यद्यपि रोहगुप्त को सूत्र में आर्य महागिरि का शिष्य कहा हुआ है, परन्तु उत्तराध्ययन वृत्ति में श्री गुप्ताचार्य का शिष्य कहा होने को कारण हमने भी वैसे ही लिखा है । तत्व तो बहुश्रुत जाने ।
* कुत्रिक अर्थात् तीन लोक, आपण अर्थात् दुकान । तीन लोक के अंदर की सब वस्तुएं जिस दुकान पर मिल सकती हों-उसे कुत्रिकापण कहते हैं। वैसी रामगृही नगरी में देवाधिष्ठित दुकान थी, वहां भी नोजीव न मिला।
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॥१३५॥
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