Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 286
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ १४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पालित को वन्दन करता हूँ। क्षमा के सागर, घीर और जो ग्रीष्मकाल के प्रथम मास में फागन के शुक्ल पक्ष में स्वर्ग गये ऐसे काश्यप गोत्रीय आर्यहस्ती को मैं वन्दन करता हूँ । शीललब्धिसंपन्न और जिस के दीक्षा महोत्सव में जिस पर देवोंने छत्र धारण किया था ऐसे सुव्रत गोत्रवाले आर्यधर्म को बन्दन करता हूँ । array गोत्रीय आर्यहस्ती को तथा मोक्षसाधक आर्यधर्म को नमन करता हूँ। काश्यप गोत्रीय आर्यसिंह को नमन करता हूँ। उन्हें मस्तक से नमन कर स्थिर सत्व, चारित्र और ज्ञान से संपन्न गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य जम्बू को वन्दन करता हूँ । सरलता से संयुक्त तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र से संपन्न ऐसे काश्यप गोत्रीय स्थविर नंदि को भी नमन करता हूँ । फिर स्थिर चारित्रवाले तथा उत्तम सम्यक्त्व एवं सत्व से भूषित माढर गोत्रीय देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूँ। अनुयोग धारक धीर, मतिसागर और महासत्वशाली वच्छगोत्रीय स्थिरगुप्त क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूँ। ज्ञान, दर्शन और चारित्र में सुस्थित गुणवन्त ऐसे स्थविर कुमारधर्म गणि को वन्दन करता हूँ । सूत्रार्थरूप रत्नों से भरे हुए तथा क्षमा, दम, मार्दवादि गुणों से संपन्न ऐसे काश्यप गोत्रीय देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूँ । इस प्रकार जगद्गुरु भट्टारक श्रीहीरविजयसूरीश्वर के शिष्यरत्न महोपाध्याय श्री कीर्तिविजय गणि के शिष्यरत्न श्री विनयविजय गणि की रची हुई श्रीकल्पसूत्र की सुबोधिका नाम की टीका में यह आठवाँ व्याख्यान समाप्त हुआ । तथा स्थविरावली नामक यह दूसरा अधिकार भी पूर्ण हुआ । MO For Private And Personal आठवां व्याख्यान. ॥ १४० ॥

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