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चाहिये.।९।
३ चातुर्मास रहे हुए साधु या साध्विीयों को चारों दिशा और विदिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षाचर्या के लिए आना जाना कल्पता है ।१० । जहाँ पर नित्य ही अधिक जलवाली नदी हो और नित्य बहती हो वहाँ सर्व दिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षाचर्या के लिए जाना आना नहीं कल्पता । ११ । कुणाला नामा नगरी के पास ऐरावती नामा नदी हमेशह दो कोश प्रमाणमें बहती है। वैसी नदी
थोड़ा पानी होनेसे उल्लंघन करनी कल्पती है, परन्तु निम्न प्रकार से नदी उतरना कल्पता हैं। | एक पैर जलमें रक्खे और दूसरा पैर पानीसे ऊपर रख कर.चले । यदि इस प्रकार नदी उतर सकता हो तो चारों दिशा और विदिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षा के निमित्त जाना आना कल्पता है ।१२। जहाँ पूर्वोक्त रीति से न जासके वहाँ साधुओं को चारों दिशा और विदिशाओं में इतना जाना आना नहीं कल्पता। यदि जंघा तक पानी हो तो वह दकसंघट्ट कहलाता है। नाभि तक पानी हो तो लेप कहाता है और नाभि से उपर हो तो वह लेपोपरि कहलाता है। शेषकाल में तीन दफा दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र नहीं हना जाता इस लिए वहाँ जाना कल्पता है। वर्षाकाल में सात दफा दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र नहीं हना जाता | शेषकाल में चौथा और वर्षाकालमें आठवाँ दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र हना जाता है। लेप तो एक भी क्षेत्र को हनता है। इससे नाभि तक पानी होतो उतरना नहीं कल्पता । नाभि से ऊपर पानी होने पर तो सर्वथा ही नहीं कल्पता । १३ ।
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