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नौवा
श्री कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
व्याख्यान.
॥१४२॥
अर्थात-वर्षा काल का एक मास और बीस दिन गये बाद इस वचन को बाधा पहुँचती है । है. देवानुप्रिय ! यदि विचार करें तो ऐसा नहीं है, क्यों कि यों तो आश्विन मास की वृद्धि होने से चातुर्मासिक कृत्य दूसरे आश्विन मास की शुक्ल चतुर्दशी को ही करना चाहिये, क्यों कि कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी को करनेसे सौ दिन हो जाते हैं और इससे 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसहराए मासे विकंते सित्तरि राइदिएहिं सेसेहिं ' अर्थात् श्रमण भगवान् श्रीमहावीरने वर्षाकाल का एक मास और बीस दिन गये बाद और सत्तर दिन शेष रहने पर पर्युषणा की, समवायांग सूत्र के इस वचन को बाधा आती है । यह भी नहीं कहना चाहिये कि चातुर्मास आषाढ आदि मास से प्रतिबद्ध है, इससे कार्तिक चातुर्मास का कृत्य कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी को ही करना युक्त है और दिनों की गिनती के विषय में अधिक मास कालचूला के तौर पर होने से उसकी अविवक्षा को लेकर सत्तर ही दिन होते हैं तो फिर समवायांग सूत्र के वचन को कैसे बाधा आती है ? उत्तर देते हैं कि जैसे चातुर्मास आषाढ आदि मास से प्रतिबद्ध है वैसे ही पर्युषणा भी भादवा मास से प्रतिबद्ध है इस कारण भादवे में ही करना चाहिये। दिनों की गिनती के विषय में अधिक मास कालचूला के तौर पर है इस से उन्हें गिनती में न लेने से पचास ही दिन होते हैं, अब फिर अस्सी की तो बात ही कहाँ ? पर्युषणा भाद्रमास से प्रतिबद्ध है यों कहना भी अयुक्त नहीं है, क्यों कि ऐसा ही बहुत से आगमों में प्रतिपादन किया हुआ है । दृष्टान्त के तौर पर 'अन्यदा पर्युषणा का दिन आने पर आर्यकालकसरिने शालिवाहन को कहा कि
॥१४२॥
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