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कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
| श्रावस्तिक १, राज्यपालिका २, अन्तरिजिया ३ और क्षेमलिज्जिया ४, ये चार शाखायें और गणिक १, मेधिक आठवां २, कामर्द्धिक ३ और इंद्रपूरक ४, ये चार कुल हैं । वासिष्ट गोत्रीय स्थविर ऋषिगुप्त काकंदिक से माणव नामक व्याख्यान. गण निकला और उसकी चार शाखायें एवं तीन कुल इस प्रकार कहे जातेः-काश्यपिका १, गौतमिका २, वाशिष्टिका ३, और सौराष्ट्रिका ४, ये चार शाखायें और ऋषिगुप्तक १, ऋषिदत्तिक २ और अभिजयन्त ३, ये तीन कुल हैं। व्याघ्रापत्य गोत्रीय तथा कौटिक काकंदिक उपनामवाले स्थविर सुस्थित और स्थविर सुप्रतिबुद्ध से कौटिक नामक गण निकला । उसकी चार शाखायें और चार ही कुल इस प्रकार हैं। उच्चनागरी १, विद्याधरी २, वजी ३ और मध्यमिका ४ ये चार शाखायें और बंभलिप्त १, वस्त्रलिप्त २, वाणिज्य ३ और प्रश्नवाहनक ४ ये चार कुल हैं । व्याघ्रापत्य गोत्रीय एवं कौटिक कादिक उपनामवाले स्थविर सुस्थित और स्थविर सुप्रतिबुद्ध के ये पाँच स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध थे, स्थविर आर्य इंद्रदिन्न १, स्थविर प्रियग्रंथ २, काश्यप गोत्रवाले स्थविर विद्याधर गोपालक ३, स्थविर ऋषिदत्त ४ और स्थविर अरिहदत्त ५।
यहाँ पर स्थविर प्रियग्रंथ का सम्बन्ध कहते हैं:-तीनसौ जिन भवन, चारसौ लौकिक प्रासाद, अठारह सौ ब्राह्मणों के घर, छत्तीस सौ बनियों के घर, नव सौ बगीचे, सात सौ वावडी, दो सौ कुवे और सातसौ दानशालाओं से विराजित अजमेर के नजीक सुभटपाल राजा के हर्षपुर नामक नगर में एक समय श्री प्रियग्रंथसूरि पधारे एक दिन वहाँ पर ब्राह्मणोंने यज्ञ में बकरा होम करना शुरु किया । तब प्रियग्रंथपूरिने एक श्रावक को वास
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कहते हैं:-तीन
लाओं से विरास सोपनियों
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