Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir भी आठवां व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद। ॥१३७॥ आर्यदिन के दो स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध थे। माढर गोत्रीय आर्य शान्तिसेनिक १ और जातिस्मरण ज्ञानधारी तथा कौशिक गोत्रीय आर्यसिंहगिरि २ । माढर गोत्रीय स्थविर आर्यशान्तिसेनिक से यहाँ पर उच्च नागरी शाखा निकली । माढर गोत्रीय स्थविर आर्यशान्तिसेनिक के चार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध थे । स्थविर आर्यसेनिक १, स्थविर आर्यतापस २, स्थविर आर्यकुबेर ३ और स्थविर आर्यऋषिपालित ४ । स्थविर आर्यसेनिक से आर्यसेनिका शाखा निकली, स्थविर आर्यतापस से आर्यतापसी शाखा निकली, स्थविर आर्य कुबेर से आर्यकुबेरी शाखा निकली और स्थविर आर्यऋषिपालित से आर्यऋषिपालिता शाखा निकली । जातिस्मरण ज्ञानवाले और कौशिक गोत्रीय आर्यसिंहगिरि के चार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध थे। स्थविर धनगिरि १, स्थविर आर्यवज्र २, स्थविर आर्यसमित ३ और स्थविर अर्हदिन ४। यहाँ पर स्थविर आर्यवज्र का सम्बन्ध कहते हैं-तुंबवन नामक ग्राम में अपनी सुनन्दा नामा सगर्भा स्त्री को छोड़ कर धनगिरिने दीक्षा ग्रहण की । सुनन्दा को पुत्र पैदा हुआ। उस पुत्र को अपने जन्मसमय ही पिता की दीक्षा की बात सुन कर जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। फिर माता का मोह कम करने के लिए वह निरंतर रोने लगा । इस से कंटाल कर उसकी माताने जब वह ६ मास का हुआ तब ही उसे धनगिरि को दे दिया । उसने झोली में लेजा कर गुरु को सौंप दिया । गुरु म. ने अति भारी जान कर उसका नाम वज्र रखा और वह पालन-पोषण के लिए एक गृहस्थ को दे दिया गया, श्राविकाओं की निगरानी में साध्वियों के उपा REUI १३७॥ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327