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भी
सातवा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ।।
॥१२४॥
ब्राह्मीने भी दीक्षा ली और वह मुख्य साध्वी बनी । भरत राजा श्रावक बना। यह स्त्रीरत्न बनेगी यह समझ कर सुंदरी को दीक्षा लेने से रोकी हुई सुन्दरी श्राविका बनी। इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना हुई । फिर कच्छ और महाकच्छ के सिवा सर्व तापसोंने प्रभु के पास आकर दीक्षा ग्रहण की। इंद्र के प्रतिबोध से मरुदेवी माता का शोक निवारण कर भरत राजा अपने स्थान पर गया ।
अब भरत राजा चक्ररत्न की पूजा कर शुभ दिन में प्रयाण कर साठ हजार वर्ष में भरतक्षेत्र के छह खंडो को साध कर अपने घर वापिस आया । परन्तु चक्ररत्न आयुधशाला के बाहर ही रहा । कारण समझ भरतने अपने अठाणवें भाईयों को कहा कि-मेरी आज्ञा मानो। यह समाचार एक दूत के मुख से कहलवाया था। उन सबने एकत्रित होकर इस बात पर विचार किया कि-भरत की आज्ञा मानना या उसके साथ युद्ध करना । विचार कर सब के सब प्रभु की आज्ञानुसार वर्तने के लिए यह पूछने उनके पास आये । प्रभुने भी बैतालिक अध्ययन की प्ररूपणा द्वारा उन्हें प्रतियोधित कर वहाँ ही दीक्षा दे दी। अब भरतने बाहुबलि पर भी दूत भेजा। वह भी क्रोध से अन्ध हो और अहंकार से उद्धर हो अपना सैन्य साथ ले भरत के सामने आ इटा । बारह वर्ष तक भरत के साथ युद्ध करता रहा, परन्तु हार न खाई । जनसमूह का अधिक संहार होता देख इंद्रने आकर दृष्टि,
x सुन्दरीने प्रभु से जब यह सुना कि जो स्त्रीरत्न होता है वह नरकगामी होता है तो उसने भयभीत हो साठ हजार वर्ष तक आयंबिल की तपश्चर्या करके भरतचक्रवती की आज्ञा ले कर दीक्षा ले ली थी।
॥१२४॥
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