________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
श्री
आठवां व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद। ॥१३३ ॥
देख उसे जातिस्मरण ज्ञान पैदा हुआ। जिस से उसने सवा लाख जिनालय, और सवा करोड़ नवीन जिनविम्ब | बनवाये । तथा छत्तीस हजार मंदिरों का जीर्णोद्धार कराकर, पंचानवें हजार पीतल की प्रतिमायें भरवाकर तथा हजारों दानशालाएं खोल कर तीन खंड पृथवी को जैनधर्म से विभूषित कर दिया। अनार्य देशों को भी करमुक्त कर के धर्मानुयायी बनाया साधुवेष धारण करनेवाले सेवकों को अनार्य जैसे देशों में भेज कर साधुओं के विहार करने योग्य बनाये और अपने सेवक राजाओं को जैनधर्म में अनुरक्त किया। जो प्रासुक वस्तु वस्त्र, पात्र, अन्न, दही आदि बेचते थे उन्हें संप्रति राजाने कह रक्खा था कि तुम आते जाते मुनिओं के सामने अपनी चीजें रखना और वे पूज्य जो चीज ग्रहण करें खुशी से उन्हें देना । हमारा खजानची तुम्हें उन चीजों का मूल्य तथा इच्छित लाभ गुप्ततया देगा । वे राजा की आज्ञा से वैसा करने लगे और साधु उन चीजों को अशुद्ध होने पर भी शुद्ध बुद्धि से ग्रहण करने लगे।
वासिष्ट गोत्रीय स्थविर आर्य सुहस्तिगिरि के व्याघ्रापत्य गोत्रीय सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध नाम के कोटिक एवं काकंदी ऐसे दो स्थविर शिष्य हुए । एक करोड़ दफा सूरिमंत्र का जाप करने से सुस्थित मुनि कोटिक कहलाते थे, और काकंदी नगरी में जन्म होने के कारण सुप्रतिबुद्ध मुनि कादिक कहलाते थे। व्याघ्रापत्य गोत्रीय सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध स्थविर कोटिक और कार्कदिक के कौशिक गोत्रीय स्थविर आर्य इंद्रदिन शिष्य थे। कौशिक गोत्रीय स्थविर आर्य इंद्रदिन के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यदिन शिष्य थे। गौतम गोत्रीय
१ प्राचीन ग्रंथों में से इनका जिकर बृहत्कल्प में मिलता है।
॥ १३३॥
For Private And Personal