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श्री
आठवां व्याख्यान,
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥१२९॥
श्रीवीर प्रभु के निर्वाण से आठ वर्ष पीछे गौतम स्वामी, वीस वर्ष पीछे सुधर्मास्वामी और चौसठ वर्ष पीछे जम्बूस्वामी मोक्ष गये । उस वक्त दस वस्तु विच्छेद हो गई अर्थात् भारतवर्ष में से नष्ट हो गई । मनःपर्यव ज्ञान, १ परमावधि-जिसके होने पर अन्तर्मुहर्त पीछे केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है २ पुलाकलब्धि जिससे मुनि चक्रवर्ती के सैन्य को भी चूर्ण कर देने के लिए समर्थ होता है ३ आहारक शरीर लब्धि ४ क्षपक श्रेणि ५ उपशमश्रेणि ६ जिनकल्प ७ संयमत्रिक,-परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र ८ केवलज्ञान ९ और मोक्ष मार्ग १० यहाँ भी कवि कहता है-महामुनि जम्बूस्वामी का सौभाग्य लोकोत्तर है कि-जिस पति को प्राप्त कर के मुक्तिरूप स्त्री (भरतक्षेत्र से) अभीतक दूसरे स्वामी की इच्छा नहीं करती।
श्रीप्रभवस्वामी-काश्यप गोत्रीय आर्य जम्बूस्वामी के कात्यायन गोत्रीय स्थविर आर्य प्रभव शिष्य हुए। कात्यायन गोत्रिय स्थविर आर्य प्रभव के वच्छ गोत्रिय मनकपिता स्थविर शय्यंभव शिष्य हुए ।
एक दिन प्रभव मुनिने अपनी पाट पर स्थापन करने के लिए अपने गण में एवं संघ में उपयोग दिया, परन्तु वैसा योग्य पुरुष न देखने से, परतीर्थ में उपयोग देने पर राजगृह नगर में यज्ञ कराते हुए श्रीशय्यंभव भट्ट देखने में आये । फिर वहाँ भेजे हुए दो साधुओंने निम्न वाक्य उच्चारण किया-"अहो कष्टमहोकष्टं तत्वं न ज्ञायते परं" अर्थात-अहो! यह तो कष्ट ही कष्ट है, इसमें तत्व तो कुछ मालुम नहीं होता। यह वाक्य सुन शय्यंभवने तल्वार दिखाकर अपने ब्राह्मण गुरु से जोर देकर पूछा तब उसने यज्ञस्तंभ के नीचे से निकाल कर श्रीशान्ति
॥ १२९॥
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