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सातवा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
॥११३॥
अवसर्पिणी में दुषमसुषमा नामक चौथा आरा बहुत बीत जाने पर, ग्रीष्मकाल के चौथे महीने में, आठवें पक्ष में अर्थात आषाढ शुक्ला अष्टमी के दिन गिरनार पर्वत के शिखर पर पाँचसौ छत्तीस साधुओं सहित, चौविहार एक मासका अनशन कर के चित्रा नक्षत्र में चंद्र योग प्राप्त होने पर मध्यरात्रि के समय पद्मासन से बैठे हुए मोक्ष सिधारे । यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। अब श्रीनेमिनिर्वाण से कितने समय बाद पुस्तक लेखनादि हुआ सो बतलाते हैं। - अईन श्रीअरिष्टनेमि निर्वाण पाये यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। उन्हें चौरासी हजार वर्ष बीतने पर पचासी हजारवें वर्ष के नवसौ वर्ष बीते बाद दशवें सैके का यह अस्सीवाँ वर्ष जाता है। अर्थात श्रीनेमिनाथ के निर्वाण बाद चौरासी हजार वर्ष पीछे वीर प्रभु का निर्वाण हुआ और तिरासी हजार सातसौ पचास वर्ष पर श्रीपार्श्वनाथ निर्वाण हुआ यह अपनी बुद्धि से जान लेना चहिये । इस प्रकार श्रीनेमिचरित्र पूर्ण हुआ।
तीर्थकर भगवन्तों का अन्तरकाल १. श्रीपार्श्वनाथस्वामी के निर्वाण के बाद २५० २. श्रीनेमिनाथजी और श्रीमहावीरस्वामी के वर्षे श्रीमहावीर देव का निर्वाण हुवा; बाद ९८० वर्षे | ८४ हजार वर्ष का अन्तर है, बाद ९८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये।
सिद्धान्त लिखे गये।
११३॥
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