________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
सातवां व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
हर्षित हो प्रभुने हाथ पसारा । आप गन्ना खायेंगे? यों कह कर प्रभु के हाथ में गन्ना देकर “ इक्षु के अभिलाप से प्रभु का वंश इक्ष्वाकु हो, और उनके पूर्वज भी इक्षु के अभिलाषवाले थे अतः उनका गोत्र काश्यप हो" यों कहकर इंद्रने प्रभु के वंश की स्थापना की।
प्रभु का विवाह और राज्याभिषेक किसी युगल को उसकी माताने तालवृक्ष के नीचे रक्खा था, उस वक्त ताल का फल पड़ने से युगल में से पुरुष की मृत्यु होगई। इस तरह यह पहली ही अकाल मृत्यु हुई । जीवित रही उस कन्या के मातापिता की मृत्यु हुए बाद वह अकेली ही जंगल में फिरने लगी। उस सुन्दर स्त्री को देख युगलिये उसे नाभिकुलकर के पास ले गये। तब नाभिकुलकरने मी 'यह सुनन्दा नामा ऋषभदेव की पत्नी होगी,' यों जन समक्ष कह कर उसे अपने पास रख लिया । फिर सुनन्दा और सुमंगला के साथ बढ़ते हुए प्रभु युवावस्था को प्राप्त हुए । इंद्रने मी प्रथम जिनेश्वर का विवाह कृत्य कराना अपना कर्तव्य समझ कर करोड़ों देव देवियों सहित वहाँ आकर प्रभु का वर संबन्धी कार्य स्वयं किया और दोनों कन्याओं का वधू सम्बन्धी कार्य इंद्रानियों और देवियों ने किया। फिर उन दोनों स्त्रीयों के साथ भोग भोगते हुए प्रभु को छह लाख पूर्व बीतने पर सुमंगलाने भरत और ब्राह्मीरूप युगल को जन्म दिया, तथा सुनन्दाने बाहुबलि और सुन्दरीरूप युगल को जन्म दिया। फिर क्रमसे सुमंगलाने उनचास पुत्रयुगलों को जन्म दिया।
AEI ११६॥
For Private And Personal