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खानेवाले और जंगल में ही रहनेवाले ऐसे हम निरपराधियों के जीवने का रक्षण करो। इस प्रकार समस्त पशुओंने प्रार्थना की। तब प्रभु कहा- हे पशुरक्षको ! इन पशुओं को छोड़ दो, छोड़ दो। मैं विवाह न कराउँगा । प्रभु श्रीनेमिनाथ के वचन से पशुरक्षकोंने उन पशुओं को छोड़ दिया । सारथीने भी रथको वापिस फेर लिया । यहाँ पर भी फिर कवि कहता है- जो कुरंग- हरिण चंद्रमा के कलंक में, राम सीता के विरह में तथा नेमिनाथ प्रभुसे राजीमती के त्याग में कारणभूत बना सो सचमुच कुरंग कुरंग ही रंग में भंग करनेवाला है ।
इधर समुद्रविजय और शिवादेवी आदि स्वजनोंने तुरन्त ही वहाँ आकर रथ को अटकाया । माता शिवादेवी आँखों में आँसु भरकर बोली- हे वत्स ! हे जननीवत्सल पुत्र ! मैं प्रथम प्रार्थना करती हूँ कि तू किसी तरह विवाह करके मुझे अपनी बहू का मुख दिखला दे । नेमिक्कुमारने कहा – माताजी आप यह आग्रह छोड़ दो। मेरा मन अब मनुष्य सम्बन्धी स्त्रियों में नहीं है, परन्तु मुक्तिरूप स्त्री की उत्कंठावाला है। जो स्त्रियाँ रागी पर भी राग रहित होती हैं उन स्त्रियों को कौन चाहे ? परन्तु मुक्तिरूप स्त्री जो विरक्त पर राग रखती है उसकी मैं चाहना करता हूँ ।
उस वक्त राजीमती " हा दैव ! यह क्या हुआ ?" यों कह कर मूर्छित हो गई। सहेलियों द्वारा शीतोपचार करने पर मुस्किल से सुध में आई और उच्च स्वर से रुदन करने लगी- हे यादवकुल में सूर्य समान ! हे निरूपम ज्ञानवाले ! हे जगत के शरणरूप तथा हे करुणाकर स्वामिन् ! आप मुझे छोड़कर कहाँ चले १ फिर
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