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चौथा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद। ॥४६॥
और सुवर्ण से वृद्धि को प्राप्त होने लगा। हिरण्य-चाँदी या बिना घड़ा हुआ सुवर्ण, धन चार प्रकार का होता है, एक तो गिना जासके, दूसरा धारण किया जासके अर्थात् तराजू से तोला जासके, तीसरा मापा जासके और चौथा परिच्छेद्य अर्थात् परीक्षा की जासके ऐसा। धान्य चौवीस प्रकार का जानना चाहिये, जिस के नाम निम्न प्रकार हैं-जौं, गेहूं, शाली, बीही, सट्ठीय, कुद्दव, अणुवा, कंगु, रालय, तिल, मूंग, उड़द, अलसी, हरिमंथ, तिउडा, निप्फाव, सिलिंद, रायमासा, उच्छू, मसूर, तुवरी, कलथी, धनय और कलाया यह चौवीस प्रकार का धान्य | समझना चाहिये । राज्य के सात अंग ये हैं-एक राष्ट्र-देश, दूसरा बल-चतुरंगी सेना, तीसरा वाहन-खच्चर आदि वाहन, चौथा कोश-भंडार, पाँचवाँ कोष्टागार-धान्य भर रखने के वखार, छठा पुर-नगर और सातवाँ अन्तःपुर-रानियों के रहने का स्थान । तथा जनपद-देशवासी लोग और यशोवाद-कीर्ति, इन सब वस्तुओं से वह ज्ञातकुल वृद्धि पाता था। विस्तारवाला गोकुल, सुवर्ण, रत्न, मणि, प्रवाल, मोति, दक्षिणावर्त शंखादि तथा प्रीति सत्कारादि से सिद्धार्थ राजकुल अत्यन्त बढ़ता गया ।
श्रमण भगवन्त महावीर प्रभु के मातापिता के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय पैदा हुआ कि जब से हमारा यह पुत्र कुक्षी में गर्भतया उत्पन्न हुआ है तब से लेकर हम चाँदी से, सुवर्ण से और धन धान्य से तथा पूर्वोक्त प्रीति सत्कारादि से अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होते हैं इस लिए जब हमारे इस बालक का जन्म होगा तब हम भी इस धनादिक की वृद्धि के अनुरूप गुणनिष्पन्न नाम रक्खेंगे । अर्थात् 'वर्धमान' नाम रक्खेंगे।
॥४६॥
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