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आर्य! मेरे बैल कहाँ हैं ? प्रभु न बोले । यह समझ कर कि इन्हें मालूम नहीं है वह जंगल में उन्हें ढूँढने लगा । बैल इधर उधर चर कर थोड़ीसी रात्रि रहने पर प्रभु के पास आ बैठे। रातभर भटक कर ग्वाला भी वहाँ आया और बैलों को देख वह विचारने लगा कि इसे खबर थी तथापि मुझे सारी रात भटकाया । इस विचार से क्रोधित हो रस्सा उठा कर प्रभु को मारने के लिए दौड़ा। उसी वक्त इंद्रने अवविज्ञान से जानकर ग्वाले को शिक्षा दी ।
उस समय इंद्रने प्रभु से प्रार्थना की- भगवन् ! आपको बहुत उपसर्ग होनेवाले हैं, अतः सेवा करने के लिए मैं आपके पास रहूँ तो ठीक। प्रभुने कहा कि हे देवेंद्र ! ऐसा कदापि न हुआ, न होता है और न होगा, तीर्थकर किसी देवेंद्र या असुरेंद्र की सहायता से केवलज्ञान प्राप्त नहीं करते, किन्तु अपने ही पराक्रम से प्राप्त करते हैं । तब इंद्र मरणान्त उपसर्ग टालने के लिए प्रभु की मौसी के पुत्र सिद्धार्थ नामक व्यन्तर देव को प्रभु की सेवा में छोड़ गया ।
फिर प्रातःकाल होने पर कोल्लाग नामक सन्निवेश में प्रभुने बहुलनामा ब्राह्मण के घर पात्र सहित धर्म की प्ररूपणा करनी है यह विचार कर प्रथम पारणा वहाँ गृहस्थ के पात्र में परमान्न (खीर) से किया ।
उस समय देवोंने पांच दिव्य प्रकट किये - १. वस्त्रों की वर्षा की २. सुगंध जल से पृथ्वी सिंचन की ३. पुष्पवृष्टि की ४. देवदुंदुमि बजाई. ५. अहोदानमहोदानं की घोषणा की, बाद साडे बारह करोड सौनैया
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