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श्री
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
॥७१॥
वेत्ता ! तूं खेद न कर, तेरा शास्त्र सत्य ही है। इन लक्षणों से ये प्रभु तीन जगत् के पूजनीय और वन्दनीय है, छड्डा ये सुरासुरों के स्वामी और सर्व प्रकार की संपदाओं के आश्रयभृत तीर्थकर होंगे । इनका शरीर पसीने के मैल से INव्याख्यान. रहित है, श्वासोश्वास सुगन्धवाला है, रुधिर और मांस गाय के दूध समान सुफेद । इत्यादि इनके बाह्य और अभ्यन्तर सुलक्षणों को कौन गिन सकता है ? इत्यादि कह कर उसे मणि, सुवर्णादि से समृद्धिवान् करके इंद्र अपने स्थान पर चला गया। यह सामुद्रिक शास्त्रवेत्ता भी हर्षित हो अपने देश गया।
श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु बारह वर्ष से कुछ अधिक समय तक कायाको नित्य वोसरा कर एवं शरीर | पर से ममता को तज कर रहते हैं । उन्हें जो कोई उपसर्ग होता है उसे निश्चलता से सहते हैं । अर्थात् देवकृत,
मनुष्यकृत, भोगप्रार्थनारूप अनुकूल उपसर्ग, ताड़नादि प्रतिकूल उपसर्गों को सम्यक प्रकार से सहन करते हैं | क्रोध और दीनता रहित सहते हैं । प्रभुने जो देव, मनुष्य और तिर्यच सम्बन्धी अनुकूल तथा प्रतिकूल उपसर्ग सहन किये सो कहते हैं।
शालपाणि का उपसर्ग तथा भगवान् के दश स्वप्न ___ प्रभुने प्रथम चातुर्मास के सिर्फ १५ दिन मोराक नामक सन्निवेश में व्यतीत कर शेष साढ़े तीन महिने अस्थिक ग्राम में व्यतीत किये । वहां शूलपाणि यक्ष के चैत्य में रहे। वह यक्ष पूर्वभव में धनदेव नामक व्यापारी का बैल था। उस व्यापारी की नदी उतरते समय पाँचसौ बैलगाड़ियाँ कीचड़ में फस गई । उल्लसित
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