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तुझे दे देंगे और फिर मैं इसे ऐसा रफूकर दूँगा कि जिस से वे मालूम नहीं होने से उसका एक लाख सुवर्णमोहरें जितना मूल्य मिल जायगा । अपने दोनों आधा २ बाँट लेंगे इससे दोनों सुखी हो जायेंगे । इस तरह रफूकार से प्रेरित हो कर वह ब्राह्मण फिर प्रभु के पास आया, परन्तु लज्जावश मांग न सका और साल भर तक प्रभु के पीछे पीछे फिरता रहा । जब वह अर्ध वस्त्र स्वयं गिर पड़ा तब वह उसे उठा कर ले गया । इस प्रकार प्रभुने सवस्त्र धर्म कथन करने के लिये एक वर्ष और एक मास तक वस्त्र धारण किया। इसके बाद जीवन पर्यन्त प्रभु वस्त्र और पात्र विना ही रहे हैं ।
सामुद्रिक शास्त्री का प्रसंग ।
एक दिन गंगा के किनारे विहार करते हुए सूक्ष्म मिट्टीवाले कादव में प्रतिबिम्बित हुई प्रभु की पदपंक्तियों में चक्र, ध्वज, अंकुश आदि लक्षणों को देख कर पुष्प नामक सामुद्रिक विचारने लगा कि यहाँ से कोई चक्रवर्ती नंगे पैर चला जा रहा है अतः मैं शीघ्र ही आगे जा कर उसकी सेवा करूँ जिस से मेरा भी अभ्युदय हो । यह सोच कर बह शीघ्र ही चल कर पद चिन्हों के अनुसार प्रभु के पास आ पहुँचा। प्रभु को मुंडित देख विचारने लगा कि - अहो ! मैंने तो व्यर्थ ही कष्ट उठा कर सामुद्रिक शास्त्र पढा ! ऐसे लक्षणोंवाला भी मुण्डित हो कर व्रत कष्ट सहन करता है ? सामुद्रिक शास्त्र असत्य है, इसे अब नदी में ही फेंक दूँ । इतने ही में अवधिज्ञान से जान कर तुरन्त ही वहाँ पर इंद्र आया । उसने प्रभु को नमस्कार कर पुष्पक से कहा कि हे सामुद्रिक
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