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कत्सस्त्र
बनुवाद। ॥१०७॥
बोली-हे नेमिकुमार! सुनो, पहले भी हरिवंश कुल में भूषण समान श्रीमुनिसुव्रतस्वामि बीसवें तीर्थकर हुए उन्होंने । सातवां भी गृहस्थावास में रह कर पुत्रोत्पत्ति होने के बाद दीक्षा अंगीकार की थी और मोक्ष में गये थे। फिर व्याख्यान. पद्मावतीने कहा-हे कुमार ! इस संसार में निश्चय ही स्त्री विना मनुष्य की कुच्छ शोभा नहीं है एवं स्त्री रहित मनुष्य का कोई विश्वास भी नहीं करता, क्योंकि स्त्रीरहित मनुष्य विट कहलाता है । इतने में गांधारी चोलीहे बुद्धिमान कुमार ! सजन यात्रा अर्थात् घर पर श्रेष्ठ मनुष्य मेहमान आयें उनकी मेहमानगीरी करना, संघ निकालना, पर्व का उत्सव करना, घर पर विवाह कृत्य हो, वारफेर और पर्षदा ये सब अच्छे काम स्त्री के विना नहीं शोभते । फिर गौरी बोली-देखो ज्ञानरहित पक्षी भी सारा दिन जहाँ तहाँ भटक कर रात को अपने घौस-17 ले में जाकर अपनी स्त्री के साथ निवास करते हैं इस लिए हे देवर ! क्या तुम्हारे में पक्षियों जितनी भी समझ नहीं है ? लक्ष्मणा बोली-स्नान आदि सर्व अंग की शोभा में विचक्षण, प्रीतिरस से सुन्दर, विश्वास का पात्र और दुःख में सहाय करनेवाला श्री के विना और कौन होता है ? अंत में सुसीमा कहने लगी-स्त्री विना घर पर आये हुए महमानों की और मुनिराजों की सेवाभक्ति कौन करे और अकेला पुरुष शोभा भी कैसे प्राप्त कर सकता है ? इस तरह गोपियों के वचनों और यादवों के आग्रह से मौन रहे हुए और जरासा मुस्कराते प्रभु को देख कर 'अनिषिद्धं अनुमतं' अर्थात् जिस बात का निषेध नहीं किया जाता उसकी रजामंदी समझी जाती है, इस न्याय से उन गोपियोंने यह घोषणा कर दी कि नेमिकुमारने विवाह कराना मंजूर कर लिया है। १०७॥
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