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सातवा व्याख्यान.
श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद।
कृष्ण महाराज विचारने लगे-यह नेमिकुमार तो सुखपूर्वक मेरा राज्य ले लेवेगा! सचमुच ही स्थूल बुद्धिवाले मूर्ख मनुष्य केवल कष्ट के ही भागीदार बनते हैं और फल बुद्धिमान् लेलेते हैं। जैसे कि समुद्र का मंथन तो किया शंकरजीने और उससे प्राप्त हुए रत्न देवोंने ले लिये । देखो खाद्य पदार्थ को चबा चबा कर कष्ट से रसदार तो दाँत बनाते हैं और जीम सहज में ही सटक लेती है।
प्रभु को विवाह मंजूर कराने के लिए गोपीयों का प्रयत्न । फिर श्री कृष्ण बलभद्र के साथ विचार करने लगे कि " अब हमें क्या करना चाहिये ? राज्य की इच्छावाला नेमिकुमार तो बहुत बलवान् है" इतनेही में आकाशवाणी हुई-'हे हरे ! पूर्व में श्री नेमिनाथ प्रभुने कहा हुआ है कि बाईसवाँ तीर्थकर नेमि नामक कुमार अवस्था में ही दीक्षा ले लेगा, ' इस देववाणी को सुन कर श्री कृष्ण निश्चिन्त हुए । तथापि निश्चयार्थ नेमिनाथप्रभु को साथ ले जलक्रीडा करने के लिए अपनी रानियों सहित तालाब पर गये । वहां प्रेम से नेमिकुमार का हाथ पकड़ कर कृष्णने तुरन्त ही तालाव में प्रवेश किया। वहां नेमिनाथप्रभु को केशर का रंगवाला पानी सुवर्ण की पिचकारियों में भर कर सिंचित करने लगे। रुक्मिणी आदि गोपियों को कृष्णने पहले से ही कहा हुआ था कि नेमिकुमार के साथ निःशंकतया क्रीड़ा करके उसे विवाह के लिए तैयार करना। फिर उन गोपियों में से कितनीएक प्रभु पर केशरी उत्तम जलसमूह फेंकने लगीं। कितनीएक सुन्दर पुष्पसमूह की गेंद बना कर प्रभु की छाती पर मारने लगीं। कईएक उन्हें तीक्ष्ण कटाक्षों के बाणों
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