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श्री
कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद |
॥ ७८ ॥
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ध्यानस्थ हो बलदेवके चैत्य में रहे । वहाँ भी गोशाला बलदेवके मुख में मेहन रख खडा रहा इस वहाँ भी उसे खूब मार पडी । दोनों जगहों में उसे लोगोंने मुनि जान कर छोड दिया । क्रमसे प्रभु उन्नाग सन्निवेश में गये । मार्ग में सम्मुख आते हुए एक दंतुर पति पत्नी युग्मको देख गोशालाने उनकी हँसी की कि देखो विधाता कैसा चतुर है- दूर देश में बसनेवाली को भी उसके योग्य ही ढूँढ कर जोडी मिला देता है । इस से खिज कर उन दोनोंने उसे पकड कर खूब पीटा और अन्त में हाथ पैर बांध उसे बाँसों की जाल में डाल दिया । बाद उसे प्रभु का छत्र धरनेवाला समझ कर बन्धन मुक्त कर दिया। वहां से प्रभु गोभूमि तरफ गये ।
में
प्रभुने आठवां चातुर्मास राजगृह में किया । तथा चौमासी तप किया । बाहर पारणा कर फिर अनार्य देश में पधारे ।
नवां चातुर्मास वहां किया और चौमासी तप भी किया। प्रभु को वहां बहोत उपसर्ग हुए। फिर दो मास तक प्रभु वहां ही विचरे। वहांसे कूर्मग्राम तरफ जाते हुए मार्ग में एक तिल के पौदे को देखकर गोशालाने प्रभु से पूछा कि यह पौदा सफल होगा या नहीं ? प्रभुने कहा कि इसमें रहे हुए पुष्पों के सातों ही जीव मरकर इसी की एक फली में तिलके रूप में पैदा होंगे । यह सुनकर प्रभु का वचन मिथ्या करने के लिए उसने उस तिल के पौदे को उखेड कर एक तरफ रख दिया। उस वक्त नजीक में रहे हुए व्यन्तर देवोंने विचारा कि प्रभु का वचन मिथ्या न होना चाहिये, अतः उन्होंने वहां पर वृष्टि की इससे उस भीगी हुई जमीनमें उस पर
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पांचवां व्याख्यान.
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