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कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
हे वादीरूप घड़े के लिए मुद्गर समान ! हे वादीरूप उल्लुओं के लिये सूर्य तुल्य ! हे वादीरूप समुद्र के लिए - अगस्ति के समान! हे वादीरूप वृक्ष को उखाड़ फेंकने में हाथी के समान ! हे वादीरूप देवों में इंद्र के समान! व्याख्यान. हे वादीरूप गरुड़ के प्रति गोविन्दक समान! हे वादीरूप मनुष्यों के राजा! हे वादीरूप कंस को मारने में कृष्ण के समान ! हे वादीरूप मृग के लिए सिंह के समान! हे वादीरूप ज्वर के प्रति धन्वन्तरी वैद्य के समान! हे वादियों के समूह में मल्ल के समान! हे वादियों के हृदय के शल्य समान! हे वादीरूप पतंगों को दीपक समान! हे वादीसमूह के मुकुट समान ! हे अनेक वादों को जीतनेवाले पंडितशिरोमणि! हे सरस्वती का प्रसाद प्राप्त करनेवाले तेरी जय हो! इस प्रकार विरुदावली के नारों से जिन्होंने आकाश तल को गुंजायमान कर दिया है, उन पाँचसौ शिष्यों द्वारा परिवेष्टित इंद्रभूति प्रभु के पास जाते हुए रास्ते में विचारता है-भला इस दुष्टने यह क्या किया ? कि जो मुझे सर्वज्ञ मिथ्याआडम्बरसे क्रोधित किया!! यह तो मेंडक काले नाग को लातें मारने के लिए तैयार हुआ है या चूहा अपने दाँतों से बिल्ली के दाँत तोड़ने को तैयार हुआ है । अथवा बैल अपने सींगों से इंद्र के हाथी को मारने की इच्छा करता है। अथवा हाथी अपने दाँतों से पर्वत को गिरा देने का प्रयत्न करता है! या खरगोश सिंह की केशराओं को खेंचना चाहता है कि जो यह मेरे सामने लोक में अपना सर्वज्ञपन प्रसिद्ध करता है ! शेष नाग के मस्तक पर रहे हुए मणि को लेने के लिए इसने हाथ बढ़ाया है, क्यों कि इसने मुझे सर्वज्ञ के अभिमान से कोपायमान किया है। पवन के सन्मुख होकर इसने दावानल सुलगाया है। अथवा ॥८८॥
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