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रात्रि को प्रतिमा ध्यान से खड़े थे । उस वक्त वह मेघमाली नामा देव प्रभु को उपद्रव करने आया। क्रोधान्ध हो उसने दिव्य शक्ति द्वारा बनाये शेर, बिच्छू आदि के रूपों से प्रभु को हराया परन्तु प्रभु को भय रहित देख आकाश में अंधकार सरीखे घोर बादल बना कर कल्पान्तकाल के मेघ समान मूसलधार से वृष्टि शुरू की। सब दिशाओं में भयंकर बिजली का तड़तड़ाट और ब्रह्माण्ड को फोड़ डाले इस प्रकार की घनगर्जनाओं की गड़गड़ाट शुरू कर दी। इससे थोड़े ही समय में प्रभु के नाक तक पानी चढ़ आया। उसीवक्त धरणेंद्र का आसन हिलने लगा | ज्ञान से जान धरणेंद्र अपनी पट्टरानीयों सहित तुरन्त वहाँ आया और प्रथम अपनी फणाओं से उसने प्रभु पर छत्र धारण किया। फिर धरणेंद्रने अवधिज्ञान से मेघमाली को ईर्षा से वर्षता देख उसे धमकाया । मेघमाली प्रभु से क्षमा मांगकर तथा प्रभु का शरण ले अपने स्थान पर चला गया। धरणेंद्र भी प्रभु समक्ष नाट्यादि पूजा कर अपने स्थान को चला गया। इस प्रकार प्रभुने देवादिकृत उपसर्ग को भली प्रकार सहन किया।
प्रभु का कैवल्य कल्याणक। अब पार्श्वनाथ प्रभु अणगार हुए और जाने आनेकी उत्तम प्रवृत्तिवाले हुए, उन्हें आत्म भावना भाते हुए लिरासी दिन बीत गये । जब चौरासीवाँ दिन बीत रहा था, ग्रीष्म काल का प्रथम मास और प्रथम ही पक्ष था, उस चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चौथ के दिन पहले पहर के समय धातकी नामा वृक्ष के नीचे जब
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