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अंगुल अधिक मनुष्य क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी पंचेंद्रियों के मनोगत पदार्थों को जानता हो। ऋजुमतिवाले तो | चारों तरफ संपूर्ण मनुष्य क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी पंचेंद्रियों के मनोगत घट आदि पदार्थ मात्र को साधारणतया जानते हैं। इन दोनों में इतना ही भेद समझना चाहिये । तथा देव, मनुष्य और असुरों की सभा में वाद में पराजित न हो सकें ऐसे चार सौ (४००) वादियों की उत्कृष्ट वादी संपदा हुई । श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर के सात सौ (७००) शिष्योंने मोक्ष प्राप्त किया यावत् सर्व दुःख से मुक्त हुए, तथा चौदह सौ (१४००) साध्वियाँ मुक्ति में गई। श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु के आगामी मनुष्य गति में शीघ्र ही मोक्ष जानेवाले, देवभव में भी प्रायः वीतरागपन होने से कल्याणकारी और आगामी भव में सिद्ध होने के कारण श्रेयस्कारी ऐसे आठ सौ (८००) अनुत्तर विमान में उत्पन्न होनेवाले मुनियों की उत्कृष्ट संपदा हुई।
श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु की दो प्रकार की अंतकृत भूमि हुई। पहली युगान्तकृत भूमि और दूसरी पर्यायन्तकृत भूमि । युग के उत्तम पुरुष का अन्त करे, वह युगान्तकृत भूमि-महावीर प्रभु के मोक्ष पधारने के बाद सौधर्मस्वामी और जम्बूस्वामी परंपरा से मोक्ष गये, यानी तीनों मोक्ष पधारे, अब पीछे कोई मोक्ष नहीं जायगा; यह युगान्तकृत भूमि समझना। तीर्थकर देव को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद जब मोक्ष मार्ग शुरू हो वह पर्यायान्तकृत भूमि-महावीर प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के चार वर्ष बाद मुक्तिमार्ग प्रारम्भ हुवा; यह 'पर्यायान्तकृत भूमि' समझना ।
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