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रख आप कहीं चली गई। खोज करने पर भी मुश्किल से सेठ को चौथे दिन चंदना का पता चला । वह ताला खोल उसी प्रकार उसको देहली पर बैठाकर तथा एक छाज में पड़े हुए उड़द के बाँकले खाने के लिए देकर उसके पैरों की बेड़ी कटवाने के वास्ते लुहार को बुलाने चला गया उस वक्त कुलीन चंदनाने विचारा-यदि इस वक्त कोई भिक्षाचर आजावे और उसे कुछ देकर खाऊं तो ठीक हो। पुण्योदय से उसी वक्त अभिग्रहधारी श्री वीरप्रभु पधारे। चंदना हर्षित हो बोली-प्रभो! ग्रहण करो । परन्तु प्रभु अभिग्रह में सिर्फ रोना न्यून देख वापिस चले । चंदना प्रभु को वापिस लौटते देख इस विचार से कि प्रभु यहाँ तक आकर भी कुछ लिये बगैर ही पीछे जा रहे हैं खेदपूर्वक रोने लगी। फिर प्रभुने अपना अभिग्रह संपूर्ण हुआ देख वापिस फिर के चंदना के हाथ से उड़द के बॉकुले ग्रहण किये । इसतरह पांच दिन कम छ महिने में भगवान का पारण हुआ। यहाँ पर कवि कहता है किचंदना सा कथं नाम, बालेति प्रोच्यते बुद्धैः। मोक्षमादत्त कुल्माषैर्महावीरं प्रतार्यया ॥१॥
पंडित लोग चंदना को बाला क्यों कहते हैं ? क्यों उसने तो उड़द के बाँकुलों द्वारा प्रभु वीर को ठगकर मुक्ति ले ली। उसवक्त वहां पंच दिव्य प्रगट हुए, इंद्र भी आया, देवता नाचने लगे, चंदनाके मुंडित मस्तक 1 पर केश होगये, पैर की बेड़ियां ही झांझर बन गई, मृगावती मौसीभी वहां आमिली । तथा सम्बन्ध मालूम
होने से वसुधारा में पड़ा हुआ धन शतानीक लेने लगा उसको निवारण कर चंदना की आज्ञा से धनावह को
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