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भी
पांचा व्याख्यान.
कल्पसूत्र
अनुवाद
॥७४॥
प्रभु के त्रिपृष्ठ के भवमें मारे हुये सिंह के जीवने सुदंष्ट्र नामक देवने नाव को डबो देने का प्रयत्न किया, परन्तु कंबल, शंबल नामक नागकुमार देवोंने आकर उस विघ्न को दूर किया। उन कंबल शंबल की उत्पत्ति इस प्रकार है-
मथुरा नगरी में साधुदासी और जिनदास नामक स्त्री भरतार रहते थे। वे परम श्रावक थे, पाँचवें व्रत में उन्होंने चौपद पशु सर्वथा न रखने का परित्याग किया था। एक ग्वालन उनके घर हमेशह दूध दही देजाती थी, साधु दासी उसकी एवज में यथोचित द्रव्य दे देती थी, इस प्रकार उनमें अत्यन्त प्रेमभाव होगया। एक दिन उस ग्वालन के घर विवाह प्रसंग आगया अतः उसने उन दोनों को निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि हम ब्याह में तो तेरे घर नहीं आ सकते, परन्तु ब्याह में जो सामग्री चाहिये सो हमारे घर से लेजाना। उनसे मिले हुए चंद्रवा, वस्त्र, आभूषणादिसे उस ग्वालन का विवाह अच्छा उत्कृष्ट होगया। इससे ग्वाला और ग्वालनने प्रसन्न होकर अत्यन्त मनोहर और समान उम्रवाले दो बाल वृषभ-बछड़े लाकर उन्हें दे दिये। उनके अनेकवार इन्कार करने पर भी वे जबरदस्ती उनके घर बाँध गये । जिनदासने विचारा कि यदि अब इन्हें वापस देदंगा तो खस्सी करने और भार ढोने आदिसे ये वहाँ दुःख ही पायेंगे । इस विचार से वह प्रासुक तृण जल आदि से उनका पोषण करने लगा। उनके बाँधने की जगह के पास ही पोशाल थी । जब अष्टमी आदि पर्व के दिन जिनदास पौषध लेकर पुस्तक
पढ़ता तब वे भी सुनते और इससे वे भद्रिक बन गये। अब जब कभी वह श्रावक उपवास कर के पौशाल में बैठता का है तब उस दिन वे बैल भी चारा नहीं खाते । इससे जिनदास को उन पर अधिक प्रेम हो गया । एक दिन
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