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| पर दृष्टिज्वालायें फेंकने लगा और दृष्टिज्वाला फेंककर इस विचार से कि इसके गिरने पर मैं दव न जाऊं, पीछे हट जाता है। परन्तु प्रभु को निश्चल ध्यानस्थ देख कर अत्यन्त क्रोधातुर हो उसने प्रभु को डंक मारा तथापि प्रभु को अव्याकुल और उनके पैर से दूध के समान सुफेद खून निकला देखकर तथा "बुज्झ बुज्झ चंडकौसिया" ऐसे प्रभुवचन सुनकर विचार करते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। अब वह प्रभु को तीन प्रदक्षिणा देकर अहो ! करुणासागर प्रभुने मुझे दुर्गतिरूप कूपमें से निकाल लिया इत्यादि विचार करता हुआ अनशन कर एक पक्ष तक अपने बिलमें मुख डालकर शान्त रह गया। उस मार्गसे जाती हुई थी बेचनेवाली स्त्रियोंने उस पर धीके छांटे डालकर उसकी पूजा की । उस घी आदि की सुगन्ध के कारण वहाँ आई हुई अनेकानेक चींटियों से अत्यन्त पीडित होता हुआ; पर प्रभु की दृष्टिरूप अमृत से सिंचित हो मृत्यु पाकर वह सहस्त्रार देवलोक में देव बना।
प्रभु वहाँसे अन्यत्र विहार कर गये । उत्तर वाचाला में नागसेनने प्रभु को क्षीर से पारणा कराया । वहाँ पर पंच दिव्य प्रगट हुए। वहाँ से श्वेताम्बी नगरमें परदेशी राजाने प्रभु की महिमा की वहां से सुरभिपुर | जाते हुए प्रभु को पांच रथयुक्त नैयका गोत्रवाले राजाओंने वंदन किया वहांसे प्रभु सुरभिपुर गये। वहाँ
गंगा नदी के किनारे सिद्धयात्र नाविक लोगों को नाव पर चढ़ा रहा था, प्रभु मी उस नाव में चढ़ गये । उस वक्त उल्लू का शब्द सुनकर क्षेमिल नामक निमित्तियेने कहा कि आज हमें मरणांत कष्ट आयगा परन्तु (प्रभु की तरफ इशारा कर के) इस महापुरुष के प्रभावसे उस संकट का नाश होगा। गंगा नदी उतरते समय
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