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छट्ठा व्याख्यान।
भगवान् का विहार दीक्षा लेकर चार ज्ञान के धारक भगवान् बन्धुवर्ग की आज्ञा लेकर विहार कर जाते हैं । बन्धु वर्ग भी | जब तक प्रभु नजर आते हैं तब तक वहाँ ही ठहर कर
" त्वया विना वीर ! कथं व्रजामो? गृहेऽधुना शन्यवनोपमाने । गोष्टीसुखं केन सहाचरामो ? भोक्ष्यामहे केन सहाथ बन्धो। ॥१॥ सर्वेषु कार्येषु च वीर वीरे-त्यामंत्रणादर्शनतस्तवार्य ।। प्रेमप्रकर्षाद भजाम हर्ष, निराश्रयाश्चाथ कमाश्रयाम ? ॥२॥ अति प्रियं बान्धव ! दर्शनं ते, सुधांजनं भावि कदास्मदक्ष्णोः ।
नीरागचित्तोऽपि कदाचिदस्मान् , स्मरिष्यसि ? प्रौढगुणाभिराम! ॥३॥” हे वीर ! अब हम आप के बिना शून्य वन के समान घर को कैसे जाय ? हे बन्धो ! अब हम किसके साथ बातचीत कर सुख प्राप्त करेंगे? हे बन्धो! अब हम कीसके साथ बैठकर भोजन करेंगे ? आर्य! सर्व कार्यों में
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