________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
चौथा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥४९॥
राजकुल आनन्दमय हो गया, वाद्य और गीतों एवं नाटक से उस समय राजकुल देवलोक के समान शोभायमान हो गया । करोड़ो ही धन के वधामणे सिद्धार्थ राजाने ग्रहण किये और करोड़ों ही गुणा धन उन्हें वापिस दिया। इस प्रकार सिद्धार्थ राजा अत्यन्त हर्षयुक्त हो कल्पवृक्ष के समान शोभने लगा।
श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु गर्भ में ही रहे हुए साड़े छह महीने बीतने पर इस प्रकार का अभिग्रह करते हैं। जब तक मेरे माता पिता जीवित रहेंगे तब तक मैं दीक्षा ग्रहण न करूँगा। गर्भ में होते हुए जब माता
का मुझ पर इतना स्नेह है तब फिर जब मेरा जन्म होगा तब तो न जाने कैसा स्नेह होगा? यह समझ कर | प्रभु ने पूर्वोक्त अभिग्रह धारण किया और दूसरों को भी मातपिता की भक्ति करने का मार्ग दिखलाया। कहा
भी है कि-पशु जब तक माता का दूध पीते हैं तब तक ही माता पर स्नेह रखते हैं, अधम मनुष्य जब तक स्त्री मिले तब तक माता पर मातापन का स्नेह रखते हैं। मध्यम मनुष्य जब तक माता घर का कामकाज करती है तब तक माता पर मातातया स्नेह रखते हैं, परन्तु उत्तम पुरुष जीवन पर्यन्त माता को तीर्थ समान समझ कर उस पर स्नेह रखते हैं।
__अब त्रिशला क्षत्रियाणीने स्नान किया, पूजन किया तथा कौतुक मंगल किया और सर्व प्रकार के | आभूषणों से वह विभूषित हुई। उस गर्भ को वह त्रिशला क्षत्रियाणी न अति ठंडे, न अति गर्म, न अति तीखे, न अति कडवे, न अति कषायले, न अति खड्डे, न अति मीठे, न अति चिकने, न अति रूखे, न अति आर्द्र,
॥४९॥
For Private And Personal