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तो अर्ध चक्री होवे, छह उच्च हों तो चक्रवर्ती और सात ग्रह उच्च हों तो वह तीर्थंकर होता है।
इस प्रकार उच्च चंद्रमा का योग आने पर, दिशाओं के सौम्य होने पर, अन्धकारादि से रहित होने पर, क्यों कि प्रभु के जन्म समय सर्वत्र उद्योत होता है । तथा रज, दिग्दाह आदि से रहित होने पर, तथा काक, उल्लू, दुर्गा आदि के जयकारक शकुन होने पर, तथा दक्षिणावर्तवाले और अनुकूल सुगन्धित शीतल सुखावह पृथवी को स्पर्श करते हुए, मन्द पवन के चलते हुए तथा जब पृथवी पर चारों और खेती लहरा रही थी और देश में सर्वत्र सुकाल था अतः सुकाल होने से देश के लोग खुशी में मन हो कर जब वसन्तोत्सवादि की क्रीड़ा में लग रहे थे तब अपर रात्रि के समय उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ चंद्रमा का योग आने पर बाधा रहित त्रिशला क्षत्रियाणीने पीड़ा रहित पुत्र को जन्म दिया ।
चौथा व्याख्यान समाप्त हुआ ।
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