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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
1184 11
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आ रही थी। वे ऐसी अवस्था में आती हुई किस मनुष्य को प्रथम त्रास और जाने के बाद हास्य न कराती थीं ? यहां तक किसी के शरीर से वस्त्र भी खिसक गये थे, किसीने हाथ में नाड़ा ही पकड़ा हुआ था । ऐसी परिस्थिति होने पर भी उन्हें जरा भी शरम नहीं लगी, क्यों कि सब लोग प्रभु को देखने के ध्यान में मन थे । कितनीएक स्त्रियाँ तो प्रभु का दीक्षा महोत्सव देखने की उत्सुकता में यहाँ तक बेभान हो गई थी कि अपने रोते हुए बच्चों को छोड़ कर पास में खड़े बिल्ली के बच्चों को ही अपना बच्चा समझ गोद में उठा लाई थीं। कोई २ स्त्री प्रभु के दर्शन कर मन में कहती- अहा ! कैसा सुन्दर रूप है ? कैसा तेज है ? अहा शरीर का सौभाग्य कैसा है !! मैं विधाता की चतुराई पर वारफेर करूँ जिसने ऐसा सुन्दर रूप बनाया है ! विकसित कपोलवाली कितनीएक स्त्रियाँ प्रभु के मुख को देखने में ऐसी तल्लीन हुई थीं कि उन के शरीर से सुवर्ण के आभूषण निकल पड़ने पर भी उन्हें मालूम नहीं होता था। कोई २ चंचल नेत्रवाली स्त्री तो अपने हस्तकमलों से प्रभु की ओर मोती फेंकती थी, कितनीएक बाजों की तान में आकर मधुर स्वर में गाने लगीं और कई एक आनन्द में आकर नाचने लग गईं ।
इस प्रकार नगर के नारियों द्वारा जिसका दीक्षा महोत्सव देखा जा रहा है ऐसे प्रभु के आगे प्रथम रत्नमय अष्टमंगल चलते हैं, जिनके नाम ये हैं-स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुगल और दर्पण उसके बाद पूर्ण कलश, सारी, चामर, बडी पताका, छत्र, मणि और स्वर्णमय पादपीठ
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पांचव
व्याख्यान.
। ।। ६५ ।।