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श्री
कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद |
॥ ६० ॥
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देवने सात ताल वृक्ष समान ऊंचा शरीर बना लिया। भगवानने ज्ञानसे उसका स्वरूप जान कर उसकी पीठपर वज्र के समान कठिन मुष्टिप्रहार किया, उस देवने मुष्टिप्रहार की वेदना से पीड़ित हो मच्छर के समान संकुचित शरीर बना लिया और उसने इंद्र का वचन सत्य मान कर अपना स्वरूप प्रकट किया तथा सब वृत्तान्त सुना कर प्रभु से अपने अपराध की वारंवार क्षमा माँगी । देव अपने स्थान पर चला गया। इंद्रने संतुष्ट होकर प्रभु का 'वीर' नाम रक्खा । यह आमल क्रीडा का वृत्तान्त समझना चाहिये ।
प्रभु का पाठशाला में जाना
अब प्रभु के माता पिता उन्हें आठ वर्ष का हुआ जान कर अति मोह के कारण उन्हें आभूषणादि पहना कर पाठशाला में ले गये । उस समय माता पिताने लग्नस्थिति पूर्वक अति हर्षित होकर बहुत धन व्यय कर के बड़ा मूल्यवान् महोत्सव किया। हाथी, घोड़ों के समूह से, मनोहर बाजुबन्ध तथा हारों के समूह से, तथा सुवर्ण घड़ित मुद्रिकायें, कंकण, कुंडल आदि आभूषणों से, तथा अति मनोहर पंचवर्णीय रेशमी वस्त्रों से स्वजनादि राजकीय मनुष्यों का उन्होंने भक्तिपूर्वक आदरसत्कार किया। पंडित के लिए अनेक प्रकार के वस्त्र, आभूषणादि एवं विद्यार्थीओं के लिए सुपारी, सिंगाडे, खजूर, सकर, खांड, चरोली, किसमिस आदि खानेकी वस्तुयें भी उन्होंने साथ लेलीं । तथा सुवर्ण, चाँदी और रत्नों के मिश्रण से बनाये हुए पुस्तकों के उपकरण, एवं कलम दवात, तख्ती को भी साथ ले लिया, सरस्वती की पूजा के लिए मनोहर तथा बहुत से रत्नों से
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पांचवां व्याख्यान.
।। ६० ।।