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यदि किसी मनुष्य को किसी वस्तु की आवश्यक्ता हो तो वह दाम दिये विना ही दुकानों से ले सकता है, दाम उसके राजा की तरफ से दिये जायेंगे । उस महोत्सव में राजपुरुषों की ओर से किसी भी प्रजाजन को कुछ भय नही है, राजदंड भी माफ कर दिया गया है, अर्थात अपराध में प्रजाजनों के पाससे जो दंड़ लिया जाता था वह भी माफ कर दिया गया। यदि इस महोत्सव दरम्यान किसी को किसी से कुछ लेनदेन सम्बन्धी लेना है तो
वह भी राजा की ओर से ही दिया जायगा। इस आनन्दोत्सवमें नगर के तथा देशभर के लोग अत्यन्त आनन्दित | हो क्रीडा में निमग्न थे। इस प्रकार सिद्धार्थ राजाने कुल मर्यादा के अनुसार दश दिन तक पुत्र जन्मोत्सव मनाया।
अब सिद्धार्थ राजाने महोत्सव किये बाद जिसमें सैकड़ों, हजारों, और लाखों का खर्च हो वैसी महाना. डम्बर युक्त प्रभुप्रतिमा की पूजा रचाई । क्योंकि महावीरप्रभु के मातापिता पार्श्वनाथप्रभु के संतानीय श्रावक थे और सूत्र में दिया हुआ " यज" धातु देवपूजा अर्थ में ही आता है इस लिये मूल में याग शब्द से देवपूजा ही अर्थ समझना चाहिये श्रावकों द्वारा दूसरे यज्ञ का असंभव ही है। राजाने उस पर्व में खूब दान दिया और मानी हुई मानतायें भी दीं ! अब सिद्धार्थ राजा दान देता और सेवकों से दिलाता हुआ स्वयं हजारों मनुष्यों द्वारा लाये हुए बधामणे भी ग्रहण करता है एवं दूसरे सेवकों से कराता है । इस प्रकार महान् उत्सव करके श्रमण भगवन्त श्री महावीरप्रभु के मातापिताने प्रथम दिन यह कुलमर्यादा की, तीसरे दिन चद्र, सूर्यदर्शन का महोत्सव किया। जिसका विधि इस प्रकार है-जन्म से लेकर दो दिन बीतने पर गृहस्थ गुरु, अरिहन्त की
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