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श्री
पांचवां व्याख्यान.
ससस्त्र हिन्दी बनुवाद ।
सामने खड़ी रहीं।
१. अलम्बुसा २. मितकेशी ३. पुण्डरीका ४. वारूणी ५. हासा ६. सर्वप्रभा ७. श्रीः
८. ही ये आठ दिगकुमारियाँ उत्तर दिशा के रूचक पर्वत से आकर चामर डालती हैं।
१. चित्रा २. चित्रकनका ३. शतेरा ४. वसुदामिनी ये चार दिककुमारियाँ हाथों में दीपक धारण कर भगवन्त के आगे खड़ी रहीं।
१. रूपा २. रूपासिका ३. सुरूपा ४. रूपकावती ये चार दिक्कुमारियाँ रूचक द्वीप के मध्यम दिशा से आकर चार अंगुल बाकी रख शेष नाल को छेद कर पास में खड्डा खोद पृथ्वी के अन्दर रखती हैं और ऊपर रत्नमय चबुतरा बना कर उसके ऊपर बघास बोती हैं।
तत्पश्चात् जन्मगृह से पूर्व, दक्षिण और उत्तर दिशा में तीन केले के घर बनाती हैं। उन में से दक्षिण दिशा के केले के घर में भगवान् और भगवान् की माता को ले जाती हैं और वहाँ उन्हें तैलादि का मर्दन करती हैं। फिर पूर्व तरफ के घर में स्नान करा कर वस्त्र तथा आभूषण पहनाती हैं। उत्तर दिशा के घर में दो अरणी काष्ठ घिस कर अग्नि पैदा करती हैं। चंदन का होम कर के उन्होंने दोनों को रक्षा पोटली बांधी। फिर मणि के दो गोलों को उछालती हुई “ तुम पर्वत के समान आयुष्य वाले बने रहो!" यों कह कर प्रभु और उनकी
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H॥५३॥
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